Hindi, asked by Hardhur1393, 1 year ago

Bus ki yatra ;chapter summary

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Answered by aliya7868
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बस की हालत बहुत ही खस्ता थी। लेखक के अनुसार उस बस के अंदर बैठना अपने प्राणों का बलिदान देने जैसा था और उसका हिस्सेदार - साहब तो पूरे रास्ते उस बस की तारीफ़ों के पुल बाँधते रहे थे। उसकी बातें सुनकर तो उनको ये लग रहा था कि ये नई बस हो। जब गिरते - पड़ते वह बस चल रही थी , तो नाले के ऊपर पूलिया पर उसके खराब हो जाने पर सबके प्राण संकट में पड़ सकते थे। लेखक के अनुसार अगर बस स्पीड पर होती तो पूरी बस नाले पर जा गिरती , पर बस का मालिक था कि वो बस की खस्ता हालत में भी उसे चला रहा था पर उससे ये न हो सका कि वो बस के टायर ही नए लगवा लेता। लेखक को लगा हम सबसे महान तो ये है जो इसकी ऐसी हालत देखकर भी इस बस से यात्रा करने में तनिक भी घबराया नहीं। वाकई में ये काबिले - तारीफ़ है कि प्राणों की परवाह न कर इस पर बैठा है। तो उसकी उस पर विशेष श्रद्धा जाग गई।
Answered by manjug191
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Answer:

बस की यात्रा हरिशंकर परसाई द्वारा लिखी गई एक व्यंग्य कहानी है। इस कहानी में उन्होंने एक दिलचस्प बस यात्रा का वर्णन किया है। कहानी में, 5 दोस्तों ने अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए बस पकड़ी, वह एक पुरानी चेन की स्थिति में थी, और लोगों ने उस बस में यात्रा करना बंद कर दिया। जब लेखक ने भी बस की पुरानी हालत देखी तो उसने सोचा कि बस चल रही है या नहीं, बस का मालिक कंपनी का साथी था, जो खुद भी उस बस में यात्रा कर रहा था, लोगों को आश्वस्त करते हुए कि यह बस बुढ़ापे में है . अनुभवी आपके बच्चों के सामने आपका ख्याल रखेंगे। जैसे ही इंजन चालू हुआ, पूरी बस का शोर समा गया, बस की हालत इतनी अस्त-व्यस्त थी कि प्रत्येक भाग अलग-अलग चल रहा था, कोई समन्वय नहीं था, और लेखक को समझ नहीं आ रहा था कि वह सीट पर बैठा है या उसके ऊपर सीट बैठी है, अचानक बस रुक जाती है और पता चलता है कि पेट्रोल टैंक में छेद है। ऐसा लग रहा था कि बस किसी पेड़ से टकरा जाएगी, बस की रफ्तार इतनी धीमी थी कि पीछे जाने वाला हर वाहन आगे चल रहा था। मैं कुछ दूर जाकर बस से उतरने वाला था लेकिन बस नाले से गिरकर बाल-बाल बच गई, सभी यात्री किसी मजबूरी के चलते बस में यात्रा कर रहे थे, लेकिन हम बस कंपनी के साथी के प्रति श्रद्धा में गिर गए। सब कुछ जानकर वह बस में सफर कर रहा था ताकि लोगों का हौसला बढ़े, अब तक हमने भी बस की असली हालत को अपनाया था और सब कुछ भगवान पर छोड़ घर बैठे बैठे थे।

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