Hindi, asked by SREEDEVIN, 1 month ago

bus ki yatra
write your experience on travelling on a bus( only in Hindi )

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Answered by Deregasri
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बस यात्रा के मेरे अनुभव पर अनुच्छेद

बस में यात्रा करना मेरी विवशता है । दिल्ली जैसे महानगरों में यातायात के लिए स्थानीय बस ही सस्ता और सुलभ साधन है । आम आदमी तिपहिया अथवा टैक्सी का खर्च उठाने में असमर्थ होता है इसलिए बस में यात्रा करना उसकी मजबूरी है ।

मुझे रोजगार के लिए रोज स्थानीय बस में यात्रा करनी पड़ती है । मेरी तरह हजारों आम आदमी रोज दिल्ली की बसों में यात्रा करते हैं और बसों में लोगों की धक्का-मुक्की के साथ-साथ मुझे रोज नए-नए अनुभव होते हैं । देश की राजधानी होने के कारण दिल्ली में बाहरी लोगों का आना-जाना लगा रहता है ।

रोजगार, खरीदारी के अलावा यहाँ पर्यटन के लिए भी रोज हजारों की तादाद में लोग आते हैं इसलिए यहाँ की स्थानीय बसें यात्रियों से ठसाठस भरी रहती हैं । किसी भी बस-स्टाप पर बस के आते ही लोगों की भीड़ उस पर टूट पड़ती है ।

इस युद्ध जैसी स्थिति में कई यात्रियों के हाथ-पाँव में चोट भी लगती है । बस के अन्दर भी प्रत्येक यात्री-दूसरे से अखाड़े के पहलवानों की तरह भिड़ंत करता हुआ प्रतीत होता है । इस प्रकार की जंग में अनेकों बार मेरा पैर कुचला गया है, मेरी छाती और कमर पर प्रहार हुए हैं और कई मुझे अपनी सीसे पुटती हुई महसूस हुई हैं ।

लेकिन मेरे जैसे नियमित यात्री ठसाठस भरी इन बसों में यात्रा करने के आदि हो गए हैं । मैं तो प्राय: यह सोचकर चिंतित होता हूँ कि बसों में नए यात्रियों की क्या दशा होती होगी । कुछ नए यात्रियों को इन बसों में क्रोधावेश में चीखते हुए मैंने अवश्य सुना है: “कहाँ फंस गए…अबे मार डाला….दम घुट गया मेरा तो…अबे पीछे हट जालिम…मेरी तौबा, इन बसों में भूलकर नहीं चदूँगा…” ।

स्थानीय बसों में भीड़ अधिक होने के कारण इन में किया, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएँ भी अकसर होती हैं । भीड़ का लाभ उठाते हुए लोग बेशर्मी पर उतर आते जिससे लड़कियों और महिलाओं को मानसिक कष्ट पहुँचता है ।

मैंने इन बसों में कई बार लड़कियों और महिलाओं को मनचलों के साथ गाली-गलौज करते हुए देखा है : ‘शर्म नहीं आती…दिखाई नहीं देता…तुम्हारी माँ-बहन नहीं हैं  क्या…ये क्या…बद्‌तमीजी है…नीच-कमीने…’ । कई बार इन बसों के मनचलों को मैंने अन्य यात्रियों द्वारा पुलिस के हवाले करते हुए भी देखा है ।

बस-यात्रा के दौरान मुझे कई बार रोचक अनुभव हुए हैं । इन स्थानीय बसों में भीड़ के बीच अकसर रोचक घटनाएँ जन्म लेती हैं । एक बार एक नौजवान महिलाओं की सीट बैठा हुआ था । एक वृद्ध महिला धक्का-मुक्की में अपने लिए सीट तलाश कर रही थी ।

वह महिलाओं की सीट पर बैठे नौजवान से ‘थोड़ी-जगह’ देने का निवेदन करने लगी । लेकिन नौजवान अनसुनी करके बैठा रहा, बल्कि उसने अपनी आँखें मूंद लीं । वृद्ध महिला ने बार-बार निवेदन किया, पर उस चिकने घड़े  पर कोई असर नहीं हुआ । आस-पास खड़े कुछ लोगों ने सख्ती से उस नौजवान से सीट छोड़ने के लिए कहा, तो वह अभिनय करते हुए बोला : ”मेरी तबीयत खराब है ।”

वृद्ध महिला ने पुन: उससे निवेदन किया, ”बेटा, मेरी भी तबीयत खराब है ।” लेकिन नौजवान सीट छोड़ने को तैयार नहीं हुआ । तभी एक पहलवान से दिखाई देने वाले व्यक्ति ने उस नौजवान का हाथ पकड़कर उसे सीट से   उ  ठाते हुए कहा, ”तुझे दिखाई नहीं देता यह लेडीज सीट है…मुझे बता तेरी क्या तबीयत खराब है, अभी ठीक कर देता हूँ ।”

नौजवान पसीने-पसीने हो गया और माफी माँगने लगा । रोचक अनुभवों के साथ इन बसों में यात्रियों की जेब कटने की घटनाएँ भी अकसर होती हैं । जेबकतरे भीड़ का लाभ लोगों के पर्स निकाल लेते हैं । एक बार एक जेबकतरे भी पर्स मेरी जेब से खींचने की कोशिश की थी, लेकिन ज्ञात हो गया था और मैंने उसका हाथ पकड़ लिया में उस जेबकतरे की तलाशी लेने पर अन्य यात्रियों के मिले थे । लोगों ने उसकी बहुत पिटाई की थी और उसे पुलिस के हवाले कर दिया था ।

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