बयार चलने पर क्या हुआ ? 'मेघ आए कविता के
आधार पर अपने शब्दों में उत्तर दीजिय
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घ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के। आगे-आगे नाचती – गाती बयार चली दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।मेघ आये कविता का केन्द्रीय भाव / मूल भाव प्रस्तुत कविता मेघ आये में कवि सर्व्वेश्वर दयाल सक्सेना जी ने मेघों का मानवीकरण द्वारा प्रकृति के विविध रूपों का बहुत सुन्दर चित्रण किया है
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