Hindi, asked by sureshchouhan7878, 6 months ago


'चीफ की दावत' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए​

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Answered by bhatiamona
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'चीफ की दावत' कहानी का सारांश:

चीफ की दावत’ कहानी भीष्म साहनी द्वारा लिखी गई एक ऐसी कहानी है, जो मां के त्याग और बेटे की उपेक्षा का ताना-बाना बुनती है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने एक माँ का दर्द उकेरा है, जो अपने बेटे बहू के लिए बोझ के समान है। माँ ने अपने बेटे को पाल पोस कर बड़ा किया लेकिन वही बेटा उसे बुढ़ापे में बोझ समझता है। कहानी का आरंभ तब होता है जब शामनाथ नाम का अफसर अपने प्रमोशन के लालच में अपने अंग्रेज चीफ को घर पर दावत पर बुलाता है और लेकिन वह अफसर के सामने अपनी बूढ़ी अनपढ़ माँ को नहीं दिखाना चाहता कि कहीं उसकी बूढ़ी अनपढ़ माँ पर अफसर चीफ की नजर न पड़ जाए और उसकी बेइज्जती ना हो जाए। इसके लिए शामनाथ अपनी माँ को अपने घर में छुपाने के लिए उपाय सोचने लगता है। उसे डर है कि कहीं उसकी ग्रामीण माँ अफसर के सामने आ गई तो उसकी बेज्जती हो जाएगी और उसकी मजाक बनेगी। वह माँ को बरामदे में कोने पर एक कुर्सी पर बिठा देता है ताकि किसी की नजर उस पर न पड़े।

अफसर आता है, और पार्टी चलती रहती है। माँ बेचारी कुर्सी पर बैठे बैठे ही सो जाती है। बाद में अंग्रेज अफसर का माँ से सामना हो ही जाता है और वह माँ से उसके हाल-चाल पहुंचता है। वह शामनाथ की माँ की ग्रामीण बोली से प्रभावित होता है, वह खुश होकर दोबारा आकर माँ से मिलने का वादा करता है। शामनाथ बाद में खुश हो जाता है कि उसकी बेइज्जती नहीं हुई। उसकी मां घबराती है कि कहीं मेरे कारण उसका बेटा उस पर नाराज ना हो, लेकिन श्यामनाथ कहता है कि अफसर तुम्हारी बनाई फुलकारी देखने के लिए दुबारा आने को कह कर गया है। माँ अपने बेटे से हरिद्वार भेजने की जिद करती है, लेकिन बेटा कहता है नहीं तुम यहीं पर रखो रहोगी फुलकारी बनाओगी तो अफसर खुश होगा और मेरी तरक्की होगी। माँ भी अपनी बेटे की तरक्की का नाम सुनकर खुश हो जाती है। इस तरह कहानी का अंत होता है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने एक माँ के भावों को व्यक्त किया है जो अपनी संतान के लिए हर हाल में सुख चाहती है, चाहे उसकी संतान उसे कितना भी दुख क्यों न दे।

Answered by hemantsuts012
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'चीफ की दावत' कहानी के लेखक भीष्म साहनी है|

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'चीफ की दावत' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए

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'चीफ की दावत' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए

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'चीफ की दावत' कहानी का सारांश-

चीफ़ की दावत मिस्टर शामनाथ के घर पर थी। शामनाथ और उनकी श्रीमती मेहमानों के आगमन के लिए अपने घर में सभी प्रकार की तैयारियाँ करने लगे। साफ-सफाई, टेबल-कुर्सियाँ, तिपाइयाँ, नेपकिन, फूल आदि बरामदे में पहुँच गये। ड्रिंक की व्यवस्था की गई। कमरे की सजावट की गई।

शामनाथ को इस बात की चिंता सता रही थी कि यदि मेहमान आ जाएँगे, तो माँ का क्या होगा? उन्हें कहाँ छुपाएँ? चीफ के सामने उनकी उपस्थिति पति-पत्नी को अच्छी नहीं लगती थी । क्योंकि उनकी माँ जब सोती है, तो जोर-जोर से खर्राटों की आवाज आती है। इसलिए उन्हें कमरे में बंद कर दिया जाय अथवा पिछवाड़े वाली सहेली के यहाँ भेज दिया जाय।

बहू और बेटे के इस तरह के व्यवहार माँ कुछ उदास थी, परन्तु बेटे से कुछ नहीं कहती है। सब कुछ सहन कर जाती है। पत्नी के कारण वह माँ की उपेक्षा भी कर देता है। आखिर चीफ़ साहब आ ही गए। माँ को अव्यवस्थित रूप में देखकर शामनाथ को क्रोध आया।

चीफ के आते ही माँ हड़बड़ाकर उठ बैठी। सिर पर पल्ला रखते हुए खड़ी हो गई। वह सकुचाती हुई काँप रही थीं। चीफ़ के चेहरे पर मुस्कराहट थी। उसने माँ को नमस्ते कहा। हाथ मिलाने के लिए कहा। माँ घबरा गई। देसी अफसरों की स्त्रियाँ हँस पड़ी। दोनों ने अंग्रेजी में 'हाउ डू यू डू?' कहा। चीफ को गाँव के लोग बहुत पसंद थे। उसको कमरे की सजावट अच्छी लगी । यहाँ तक कि फुलकारी देने तक कह दिया। चीफ़ ने माँ से गाना भी सुना। वे बहुत खुश थे।

शामनाथ इन सारी बातों से माँ पर रीझ गए। कुछ हद तक अनादर की भावना मिट गई। चीफ़ की खुशामदी से उसे तरक्की होनेवाली थी। चीफ़ के लिए माँ फुलकारी बनाकर देने के लिए तैयार हो गई। मेहमानों के जाने के बाद शामनाथ झूमते हुए आए और माँ को आलिंगन में भर लिया । "ओ मम्मी! तुमने आज रंग ला दिया । " कहते हुए खुशी जाहिर की | उसने कहा- माँ, साहब तुमसे बहुत खुश हुए। माँ की काया - बेटे के आलिंगन में छिप गई।

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