* चेहरे की वो हर खुशी *
वियोग श्रृंगार कविता)
कहाँ गायब हो गई, मेरे चेहरे की वो हर खुशी।
न जाने कैसे खो गई, मेरे दिल की वो हर मायूसी।।
नयन में नीर भर, सारी रात जागे हैं....।
उनके सपनों में जाकर लौट आए, हम कितने अभागे हैं।;
कल तलक जिन अधरों को चूमता था..!
आज उन्हीं होंठों के फाटक पर क्यों लटकी है उदासी।।
चाह थी कान्हा बनकर, वृंदावन में जाकर रास रचाना था।
उनके आँखों के दर्पण में झाँक, मुझे स्वयं को जानना था;
प्रेमपथ पर ही काँटे बिछा रखें हैं, न जाने क्यूँ बरसाने वासी!
चलो अब हो आए, दर्द की प्याली को धो आए,
जाकर काबा-काशी।।
सती से बिछुड़कर तो आपा खो रहे हैं शिव-अविनाशीll
राधा से अलग होकर स्वर खो रहा है कान्हा की वंशी;
सिया से राम अलग हैं, राधा से कृष्ण अलग हैं..!
पर तुमसे बिछुड़कर क्यों करना चाहते हैं हम खुदकुशी!
कहाँ गायब हो गई, मेरे चेहरे की वो हर खुशी..।।
लेखक :-कुमार लक्ष्मीकांत✍️
Answers
Answered by
0
Answer:
ISKA kya krna h bhai
zara bta do
Similar questions