"चाहति हुती गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही" is pankti ka asahy spsat kariye
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चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
asahy:- 'सूरदास' अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही। इस छंद में गोपियाँ अपने मन की व्यथा का वर्णन ऊधव से कर रहीं हैं। वे कहती हैं कि वे अपने मन का दर्द व्यक्त करना चाहती हैं लेकिन किसी के सामने कह नहीं पातीं, बल्कि उसे मन में ही दबाने की कोशिश करती हैं।
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