चुके थे। उन्होंने राजा से स्वत
धरती पर हैं आती बूंदें।
नाभी आपको सेवामुक्त किया ज
हरियाली फैलाती बूढ़े
आपले गुरुवार को किया जा
हरकारे गाँव-गाँव दिहोगा पोट
सागर में मिल जाती है।
गरमी से तापते लोगों को,
शीतलता पहुँचाती है।
सबका मन हरीती बूंदें।
पुरवाई के रथ पर चढ़कर
इठलाती मुकार्ती बूंदें।
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can't understand the poem
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