Hindi, asked by ronan42, 8 months ago

चीफ़ की दावत कहानी के आधार पे शामनाथ का चरित्र चित्रण किजिए?​

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Answered by Anonymous
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नई मान्यताओं और पाखण्डों से परिपूर्ण अहमन्यताओं को रेखांकित करते हुए ‘मानवीय सम्बन्धों को विश्लेषित करते हैं।’ उन्होंने निम्न एवं मध्यवर्गीय जीवन के अन्तर्विरोध पूँजीवादी प्रवृत्ति, आर्थिक विषमता तथा साम्प्रदायिकता से उत्पन्न प्रश्नों को प्रभावी रूप से उठाया है।

भारतीय मध्यवर्गीय जीवन का खोखलापन, उसकी विकृतियाँ और लोलुपताएँ बेनकाब होकर उनकी कहानियों में व्यक्त हुई हैं। भीष्म साहनी के कथा साहित्य से गुजरना अपने समय को बेधते हुए गुजरना है। उनकी कहानियाँ गहरी संवेदनाओं से जोड़कर हमें जीवित रहने का एहसास कराती हैं। ‘उन्होंने मानवी जीवन की विभिन्न अनुभूतियों को जिस तीव्रता से अपनी कहानियों में अनेक स्तरों पर व्यक्त किया है वैसी तीव्रता बहुत कम कहानीकारों में दिखाई देती है।’ उनकी कहानियाँ समकालीन जीवन, उसके अन्तर्विरोध और दबाब को वहन करती हैं –

“नये कहानीकारों में भीष्म साहनी में एक ही साथ इन दोनों (एकान्वित शिल्प व अन्तर्विरोध) विशेषताओं का सर्वोत्तम सामंजस्य मिलता है। इस दृष्टि से भीष्म साहनी सबसे सफल कहानीकार है। एक इकाई के रूप में उनकी कहानियाँ अत्यन्त गठित होती है; साथ ही प्रायः किसी न किसी प्रकार की विडम्बना को व्यक्त करती हैं और यह विडम्बना किसी न किसी रूप में हमारे वर्तमान समाज के व्यापक अन्तर्विरोधों की ओर संकेत करती हैं। उदाहरण के लिए उनकी ‘चीफ की दावत’ कहानी ही लीजिए।”

‘भीष्म साहनी के कथामानस पर प्रेमचन्द्र, यशपाल, चेखव, मोपासाँ, गोर्की व कैथरीन मेन्सफील्ड की गहरी छाप है।’ उनके 9 कहानी संग्रह हैं। ‘भाग्यरेखा’ (1953 ई.) के बाद ‘पहला पाठ’ (1957 ई.) उनका दूसरा कहानी संग्रह है। इसमें 15 कहानियाँ हैं। इस कहानी संग्रह में भीष्म जी ने जीवन को विषमता, खोखलापन व निरर्थकता को उजागर किया है। इस संग्रह की पहली कहानी ‘चीफ की दावत’ है। भीष्म साहनी की असली पहचान उनकी इसी वजनदार और चर्चित कहानी से शुरू होती है। इस कहानी में ‘शामनाथ’ के माध्यम से मध्यवर्गीय जीवन के अन्तर्विरोध, स्वार्थता, महत्वाकांक्षा, अवसरवादिता, संवेदनहीनता, मानवीय मूल्यों का विघटन, झूठी प्रदर्शनप्रियता, अपनों से दूर होते जाने की प्रक्रिया, आधुनिकता का भोंडें अनुकरण को बहुत सूक्ष्मता से उद्घाटित किया गया है-

“‘चीफ की दावत’ कहानी में साहनी ने रूढ़िविहीन मध्यवर्ग के व्यक्ति की निजी महत्वाकांक्षाओं का जो सामान्य चरित्र बनाया है उससे आधुनिक भारत के नौकरशाह और बाबूवर्ग का मिलाजुला स्वत्वहीन किन्तु आवेगपूर्ण और दिखावटी चरित्र स्पष्ट होता है।”

इसमें शामनाथ के माध्यम से समाज के खोखलेपन व असंवेदनशीलता पर तीखा व्यंग्य किया गया है। भीष्म साहनी की कहानी चीफ की दावत का मुख्य उद्देश्य ‘शामनाथ’ के माध्यम से मध्यवर्गीय व्यक्ति की अवसरवादिता, उसकी महत्वाकांक्षा में पारिवारिक रिश्ते के विघटन को उजागर करना है। औद्योगीकरण के विकास के साथ मध्यवर्ग का तेजी से विकास हुआ। शिक्षा प्राप्तकर अच्छी नौकरी पाकर या आजीविका का अन्य साधन पाकर निम्नवर्ग का व्यक्ति मध्यवर्ग में पहुँचकर उच्चवर्ग की संस्तुति के लिए उच्च वर्ग की ओर ताकने लगा। शामनाथ भी उनमें से एक है।

इस कहानी का नायक शामनाथ दफ्तर की नौकरी पाकर ‘उच्च्पद पाने की महत्वाकांक्षा’ रखने लगा और उसकी पूर्ति के लिए अपने दफ्तर के विदेशी चीफ की खुशामद में लग गया। चीफ की दावत का प्रबन्ध अपने घर करता है और अपनी बूढ़ी माँ का, फालतू समान की तरह उपेक्षा करता है। महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए माँ के साथ उसका खून का रिश्ता भी गौण हो जाता है। आधुनिक परिवारों में बूढ़ों की किस प्रकार उपेक्षा की जाती है। यह शामनाथ के व्यवहार से समझा जा सकता है।

‘आधुनिक दिखने की चाह’ में मध्यवर्गीय व्यक्ति (शामनाथ) ‘प्रदर्शन प्रिय’ हो गया है और बूढ़ी माँ चीफ की दावत के समय प्रदर्शन योग्य वस्तु नहीं, बल्कि कूड़े की तरह कहीं छिपाने की वस्तु हो गयी है। इस झूठी प्रदर्शनप्रियता और छद्मआधुनिकता को शामनाथ के चरित्र में स्पष्टतः देखा जा सकता है।

‘चीफ की दावत’ पारिवारिक जीवनमूल्यों के विघटन को स्पष्ट करने के उद्देश्य को लेकर लिखी गयी कहानी है। लेकिन माँ की ममता और उसके महत्व की स्थापना के माध्यम से लेखक ने माँ के रूप तथा स्वस्थ पुरानी परम्परा को वरेण्य सिद्ध किया है। शामनाथ जिस माँ को उपेक्षित होने लायक वस्तु मान रहे हैं उसी के माध्यम से उसकी पदोन्नति होती है।

दावत के दिन शामनाथ और उसकी पत्नी घर की सजावट के लिए विशेष चिन्तित है। आधुनिक दिखने के लिए उच्चवर्ग के विदेशी चीफ की नज़रों में सुसंस्कृत दिखने के लिए, ‘है नहीं’; यह प्रदर्शन प्रियता उनके लिए आवश्यक हो गयी है-

“अब घर का फालतू समान अलमारियों के पीछे पलंगों के नीचे छिपाया जाने लगा।”

सुसंस्कृत होने का दिखावा शामनाथ करता है। उसकी रूचि सम्पन्नता और सांस्कृतिक बोध वहाँ अपने असली रूप में आता है, जहाँ शामनाथ की बूढ़ी माँ उसके लिए छिपाने की वस्तु बन जाती है। जब कूड़े और माँ में कोई अन्तर नहीं रहता-

“तभी शामनाथ के सामने सहसा एक अड़चन खड़ी हो गयी, माँ का क्या होगा।”

“‘चीफ की दावत’ में अपनी निरक्षर और बूढ़ी माँ ही एक समस्या बन गयी जैसा घर के ‘फालतू सामान’; बल्कि सामान से भी बड़ी समस्या। सामान को छिपाना आसान, लेकिन इस जीवित सामान का क्या करे? और इस तरह शामनाथ एक कूड़े की तरह अपनी माँ को एक कमरे से दूसरे कमरे में छिपाया फिरता है।”

उस समय शामनाथ की सुरूचिसम्पन्नता और आधुनिकता बोध नहीं उसके ‘व्यक्तित्व की फूहड़ता और टुच्चापन’ प्रकट होता है, उसके सुसंस्कृत होने की कलई खुल जाती है व उसकी प्रदर्शनप्रियता व छद्म आधुनिकताबोध प्रकट हो जाता है।

शामनाथ ने अपनी सुविधा के लिए अपनी माँ को अकेलेपन का शिकार बना दिया है-

“नहीं, मैं नहीं चाहता उस बुढ़ियाँ का आना-जाना यहाँ फिर शुरू हो।”

Answered by qwstoke
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चीफ की दावत कहानी के आधार पर शामनाथ का चरित्र चित्रण निम्न प्रकार से किया गया है

- शामनाथ के घर चीफ की दावत थी। शामनाथ व उनकी पत्नी ने मेहमानों के लिए तैयारियां की। उन्होंने साफ सफाई की, टेबल व कुर्सियां , नेपकिन, फूल आदि बरामदे में सजाए गए। कमरे को सजाया गया, ड्रिंक की व्यवस्था की गई।शामनाथ को यह चिंता थी कि चीफ के सामने वह अपनी मां को कैसे छुपाए क्योंकि जब मां सोती थी तब जोर जोर से खर्राटे लेती थी।

- शामनाथ के व्यवहार से उसकी मां उदास थी परन्तु उसने कुछ नहीं कहा। चीफ जब आ गए तब मां वहीं थी, चीफ ने मां से नमस्ते की, मां ने भी चीफ का स्वागत किया। चीफ ने मां का गाना सुना। उन्होंने मां से फुलकारी बनाकर देने के लिए भी कहा।

- चीफ मां से बहुत खुश थे। चीफ के खुश होने पर शामनाथ की तरक्की होने वाली थी इस कारण शामनाथ भी मां से बहुत प्रसन्न था।

- शामनाथ ने मां को वाले लगाया व कहा, " तुमने तो रंग ला दिया मां ! "

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