चौंक उठी अपने विचार से, कुछ दूरागत ध्वनि सुनती,
इस निस्तब्ध निशा में कोई, चली आ रही है कहती-
"अरे बता दो मुझे दया कर, कहाँ प्रवासी है मेरा?
उसी बावले से मिलने को, डाल रही हूँ मैं फेरा।
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chawk uthi apne vichar se kuch duragth
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पंक्तियों में शृंगार रस है (वियोग रस )
शृंगार रस
शृंगार रस का स्थायी भाव प्रेम है। यह रस प्रेम भावनाओं द्वारा उत्पन्न होता है। यह रस दो है।
1. संयोग रस
2. वियोग रस
संयोग एवं वियोग रस प्रेम के दो भागों, मिलने एवं बिछड़ने को प्रदर्शित करते हैं।
रस की परिभाषा -
रस का शाब्दिक अर्थ "आनंद" है। कविता पढ़ते या सुनते समय जो आनंद अनुभव होता है, उसका नाम रस है।
रस काव्य पाठ करते समय होने वाले आंतरिक आनंद की अनुभूति है। इस विवेचन के अनुसार कविता में वीर रस का प्रयोग किया गया है यदि वह पढ़ने के बाद प्रेरणा और उत्साह देता है। इसी प्रकार रस के और भी रूप हैं जिनका मिश्रण काव्य की रचना करता है। ये सभी रस काव्य-रचना के लिए आवश्यक हैं। कविता का हर रूप जो अब मौजूद है, उसमें किसी न किसी तरह का रस है।
ऐसी और जानकारी के लिए
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