(च) कबीर यहु घर प्रेम का, खाला का घर नाहिं।
सीस उतारै हाथि करि सो पैठे घर
माहिं (च)
॥
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भावार्थ - कबीर कहते हैं - यह प्रेम का घर है, किसी खाला का नहीं , वही इसके अन्दर पैर रख सकता है, जो अपना सिर उतारकर हाथ पर रखले। [ सीस अर्थात अहंकार। पाठान्तर है `भुइं धरै'। यह पाठ कुछ अधिक सार्थक जचता है। सिर को उतारकर जमीन पर रख देना, यह हाथ पर रख देने से कहीं अधिक शूर-वीरता और निरहंकारिता को व्यक्त करता है।]
मुझे उम्मीद है कि यह आपकी मदद करेगा
कृपया अनुसरण करें और धन्यवाद
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