चालाक बिल्ला पंचतंत्र की कहानी। The Clever Cat Story in Hindi
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उसे समय की भी याद नहीं रही। चावल के दाने खत्म ही नहीं हो रहे थे, क्योंकि सभी खेतों में बिखरे हुए थे,। तीतर पूरे दिन चावल के दानों को खाता रहा। शाम होने पर वह घर लौटकर नहीं गया। रात में खेत में ही रह गया। इस तरह तीतर चार-पांच दिनों तक चावल बीन-बीनकर खाता रहा और रात भी वही काटता रहा।
पांच से छह दिनों के बाद तीतर को अपने घर की याद आई। जब वह उड़कर अपने घर गया तो देखता है कि उसके घर में एक खरगोश जमा हुआ बैठा है। तीतर की अनुपस्थिति में घूमता-घूमता हुआ खरगोश वहां पहुंचा था। घर को खाली देखकर वह उसमें रहने लगा। उसने अपने घर में खरगोश को देखकर तीतर को बड़ा आश्चर्य हुआ वह बोला, ‘अजी मेरे घर में तुम कौन हो? निकलो बाहर।‘
खरगोश ने उत्तर दिया, ‘वाह, मैं क्यों बाहर निकलूं? यह घर तो मेरा है।‘ तीतर बोला, ‘घर तुम्हारा है? तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है? मैं अपने घर को नहीं पहचानता? मैं कई वर्षों से इस घर में रहता आ रहा हूं। घर तुम्हारा नहीं, मेरा है। निकलो शीघ्र बाहर।‘ खरगोश ने उत्तर दिया, ‘दिमाग मेरा नहीं, तुम्हारा खराब हो गया है। तुम मेरे घर को अपना बता रहे हो। भाग जाओ यहां से।‘
तीतर को क्रोध आ गया। वह क्रोध के साथ बोला, ‘मूर्ख, इस घर को मैंने अपने हाथों से तैयार किया है। छह-सात दिन हुए, मैं बाहर चला गया था। तुमने घर को खाली देखकर, उस पर अपना कब्जा कर लिया। एक तो अपराध किया है और दूसरे अब सीनाजोरी कर रहे हो?‘ खरगोश भी तैश में आकर बोला।, ‘बनाया होगा तुमने घर को। तुम्हारे पास इसका क्या प्रमाण है कि घर तुम्हारा है? जो जिस घर में रहता है, घर उसी का होता है। घर में मैं हूं, तुम नहीं हो। अतः घर मेरा है, तुम्हारा नहीं।
घर को लेकर तीतर और खरगोश में वाद-विवाद होने लगा। दोनों परस्पर बहस करते हुए चीखने-चिल्लाने लगे। शोरगुल सुनकर आस-पड़ोस के सभी पक्षी एकत्र हो गए। दोनों जोर-जोर से पक्षियों से अपनी-अपनी बात कहने लगे। तीतर कहने लगा, ‘मैं 5 से 6 दिनों के लिए घर से बाहर चला गया था। घर खाली था। ना जाने कहां से यह खरगोश आकर मेरे घर में घुस गया। और अब कहता है, यह घर मेरा है।‘
तीतर के उत्तर में खरगोश कहने लगा, ‘घर तीतर का नहीं, मेरा है। यह असत्य बोल रहा है। यदि घर इसका होता, तो यह घर में होता। घर में तो मैं हूं, अतः घर मेरा है।‘ वृक्ष पर रहने वाले पक्षियों को मालूम था कि घर खरगोश का नहीं, तीतर का ही है। पर कोई प्रमाण नहीं था। बिना प्रमाण के पक्षी कुछ निर्णय नहीं कर सकते। फलतः तीतर और खरगोश का वाद-विवाद बढ़ता ही चला गया।
जब कोई निर्णय नहीं हो सका, तो तीतर और खरगोश ने निश्चय किया, झगड़े को निपटाने के लिए किसी को पंच बनाना चाहिए। परंतु पंच किसे बनाया जाए? दोनों पंच की खोज में चल पड़े। एक झोपड़ी के बाहर जंगली बिल्ला बैठा हुआ था। बिल्ली को देख कर दोनों आपस में बात करने लगे? बिल्ला बड़ा बुद्धिमान होता है। झगड़े को निपटाने के लिए हमें इसी को पंच बनाना चाहिए। पर बिल्ले को देख कर दोनों के मन में भय भी उत्पन्न हो गया था, क्योंकि बिल्ला उनका पुश्तैनी शत्रु था।
बिल्ला बड़ा चतुर और धूर्त था। दोनों की बातें उसके कानों में पड़ गई। उसको यह समझ गया कि दोनों का आपस में कोई झगड़ा है और वह झगड़े को निपटाने के लिए मुझे पंच बनाना चाहते हैं, पर डर के कारण मेरे पास नहीं आ रहे हैं। अतः मुझे साधु का वेश धारण करके बैठना चाहिए जिससे दोनों के मन का भय दूर हो जाए। बिल्ला शीघ्र ही चंदन आदि लगाकर पैरों के बल खड़ा हो गया और हाथ में माला लेकर जपने लगा।
तीतर और खरगोश बिल्ली को साधु के वेश में देखकर आश्चर्यचकित हो गए। दोनों एक दूसरे से कहने लगे, ‘हम तो बेकार में ही बिल्ले से भयभीत हो रहे थे। यह तो बहुत बड़ा महात्मा जान पड़ता है। हमें इसी को पंच मानकर अपने झगड़े का निपटारा कर आना चाहिए।‘ खरगोश और तीतर दोनों बिल्ले के पास जा पहुंचे, और कुछ दूर पर ही बैठ गए, क्योंकि बिल्ले के निकट जाने का साहस उनको नहीं हो रहा था।
खरगोश और तीतर ने कुछ दूर से ही अपनी-अपनी बात बिल्ले को सुनाई। तीतर ने कहा, ‘महाराज, मैं 5 दिनों के लिए अपने घर से बाहर चला गया था। जब लौटकर आया तो देखता हूं, घर में खरगोश ने अपना अड्डा जमा रखा है। मैंने जब उससे कहा, घर से बाहर निकल जाओ, तो कहने लगा, घर मेरा है। आप बड़े बुद्धिमान हैं। आप हमको यह बताएं कि यह घर वास्तव में किसका हुआ? जिसकी गलती हो, आप उसे दंड भी दे सकते हैं।‘
खरगोश ने तीतर के विरुद्ध अपनी बात कही। उसने कहा, ‘मैं भी आपको अपना पंच मानता हूं। कृपा करके आप हम दोनों के झगड़े का निपटारा कर दें। तीतर असत्य बोल रहा है। घर इसका नहीं मेरा है। यह पहले घर में रहता था इस बात का इसके पास कोई प्रमाण नहीं है, पर मैं तो अब भी घर में रह रहा हूं।‘ बिल्ला दोनों की बातें सुनकर माला जपता हुआ बोला, ‘भाई, मैं वृद्ध हो गया हूं। बूढा होने के कारण नेत्रों की ज्योति घट गई है। कानों से भी कम सुनाई पड़ता है। तुम दोनों जो कुछ कहना चाहते हो, मेरे अधिक निकट आकर कहो, जिससे मैं तुम दोनों की बातें सुन सकूं।‘
तीतर और खरगोश को जब यह ज्ञात हुआ कि बिल्ला तो ना ही आंखों से देख सकता है और ना ही कानों से सुन सकता है, तो दोनों के मन का डर बिलकुल दूर हो गया। दोनों निर्भय और निश्चिंत होकर बिल्ले के अधिक निकट चले गए, पर जैसे ही दोनों बिल्ले के अधिक निकट पहुंचे, उस ने झपट्टा मारकर दोनों का काम तमाम कर दिया, दोनों बिल्ले के पेट में चले गए और सदा सदा के लिए उनके झगड़े का निपटारा हो गया।
Hope it Helps !!!
Hello Mitra main kal Ek bahut hi manoranjak Kahani likhi hai agar aapko kya karna Pasand Aaye to use brainliest Mar kar dijiyega Dhanyavad.
उसे समय की भी याद नहीं रही। चावल के दाने खत्म ही नहीं हो रहे थे, क्योंकि सभी खेतों में बिखरे हुए थे,। तीतर पूरे दिन चावल के दानों को खाता रहा। शाम होने पर वह घर लौटकर नहीं गया। रात में खेत में ही रह गया। इस तरह तीतर चार-पांच दिनों तक चावल बीन-बीनकर खाता रहा और रात भी वही काटता रहा।
पांच से छह दिनों के बाद तीतर को अपने घर की याद आई। जब वह उड़कर अपने घर गया तो देखता है कि उसके घर में एक खरगोश जमा हुआ बैठा है। तीतर की अनुपस्थिति में घूमता-घूमता हुआ खरगोश वहां पहुंचा था। घर को खाली देखकर वह उसमें रहने लगा। उसने अपने घर में खरगोश को देखकर तीतर को बड़ा आश्चर्य हुआ वह बोला, ‘अजी मेरे घर में तुम कौन हो? निकलो बाहर।‘
खरगोश ने उत्तर दिया, ‘वाह, मैं क्यों बाहर निकलूं? यह घर तो मेरा है।‘ तीतर बोला, ‘घर तुम्हारा है? तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है? मैं अपने घर को नहीं पहचानता? मैं कई वर्षों से इस घर में रहता आ रहा हूं। घर तुम्हारा नहीं, मेरा है। निकलो शीघ्र बाहर।‘ खरगोश ने उत्तर दिया, ‘दिमाग मेरा नहीं, तुम्हारा खराब हो गया है। तुम मेरे घर को अपना बता रहे हो। भाग जाओ यहां से।‘
तीतर को क्रोध आ गया। वह क्रोध के साथ बोला, ‘मूर्ख, इस घर को मैंने अपने हाथों से तैयार किया है। छह-सात दिन हुए, मैं बाहर चला गया था। तुमने घर को खाली देखकर, उस पर अपना कब्जा कर लिया। एक तो अपराध किया है और दूसरे अब सीनाजोरी कर रहे हो?‘ खरगोश भी तैश में आकर बोला।, ‘बनाया होगा तुमने घर को। तुम्हारे पास इसका क्या प्रमाण है कि घर तुम्हारा है? जो जिस घर में रहता है, घर उसी का होता है। घर में मैं हूं, तुम नहीं हो। अतः घर मेरा है, तुम्हारा नहीं।
घर को लेकर तीतर और खरगोश में वाद-विवाद होने लगा। दोनों परस्पर बहस करते हुए चीखने-चिल्लाने लगे। शोरगुल सुनकर आस-पड़ोस के सभी पक्षी एकत्र हो गए। दोनों जोर-जोर से पक्षियों से अपनी-अपनी बात कहने लगे। तीतर कहने लगा, ‘मैं 5 से 6 दिनों के लिए घर से बाहर चला गया था। घर खाली था। ना जाने कहां से यह खरगोश आकर मेरे घर में घुस गया। और अब कहता है, यह घर मेरा है।‘
तीतर के उत्तर में खरगोश कहने लगा, ‘घर तीतर का नहीं, मेरा है। यह असत्य बोल रहा है। यदि घर इसका होता, तो यह घर में होता। घर में तो मैं हूं, अतः घर मेरा है।‘ वृक्ष पर रहने वाले पक्षियों को मालूम था कि घर खरगोश का नहीं, तीतर का ही है। पर कोई प्रमाण नहीं था। बिना प्रमाण के पक्षी कुछ निर्णय नहीं कर सकते। फलतः तीतर और खरगोश का वाद-विवाद बढ़ता ही चला गया।
जब कोई निर्णय नहीं हो सका, तो तीतर और खरगोश ने निश्चय किया, झगड़े को निपटाने के लिए किसी को पंच बनाना चाहिए। परंतु पंच किसे बनाया जाए? दोनों पंच की खोज में चल पड़े। एक झोपड़ी के बाहर जंगली बिल्ला बैठा हुआ था। बिल्ली को देख कर दोनों आपस में बात करने लगे? बिल्ला बड़ा बुद्धिमान होता है। झगड़े को निपटाने के लिए हमें इसी को पंच बनाना चाहिए। पर बिल्ले को देख कर दोनों के मन में भय भी उत्पन्न हो गया था, क्योंकि बिल्ला उनका पुश्तैनी शत्रु था।
बिल्ला बड़ा चतुर और धूर्त था। दोनों की बातें उसके कानों में पड़ गई। उसको यह समझ गया कि दोनों का आपस में कोई झगड़ा है और वह झगड़े को निपटाने के लिए मुझे पंच बनाना चाहते हैं, पर डर के कारण मेरे पास नहीं आ रहे हैं। अतः मुझे साधु का वेश धारण करके बैठना चाहिए जिससे दोनों के मन का भय दूर हो जाए। बिल्ला शीघ्र ही चंदन आदि लगाकर पैरों के बल खड़ा हो गया और हाथ में माला लेकर जपने लगा।
तीतर और खरगोश बिल्ली को साधु के वेश में देखकर आश्चर्यचकित हो गए। दोनों एक दूसरे से कहने लगे, ‘हम तो बेकार में ही बिल्ले से भयभीत हो रहे थे। यह तो बहुत बड़ा महात्मा जान पड़ता है। हमें इसी को पंच मानकर अपने झगड़े का निपटारा कर आना चाहिए।‘ खरगोश और तीतर दोनों बिल्ले के पास जा पहुंचे, और कुछ दूर पर ही बैठ गए, क्योंकि बिल्ले के निकट जाने का साहस उनको नहीं हो रहा था।
खरगोश और तीतर ने कुछ दूर से ही अपनी-अपनी बात बिल्ले को सुनाई। तीतर ने कहा, ‘महाराज, मैं 5 दिनों के लिए अपने घर से बाहर चला गया था। जब लौटकर आया तो देखता हूं, घर में खरगोश ने अपना अड्डा जमा रखा है। मैंने जब उससे कहा, घर से बाहर निकल जाओ, तो कहने लगा, घर मेरा है। आप बड़े बुद्धिमान हैं। आप हमको यह बताएं कि यह घर वास्तव में किसका हुआ? जिसकी गलती हो, आप उसे दंड भी दे सकते हैं।‘
खरगोश ने तीतर के विरुद्ध अपनी बात कही। उसने कहा, ‘मैं भी आपको अपना पंच मानता हूं। कृपा करके आप हम दोनों के झगड़े का निपटारा कर दें। तीतर असत्य बोल रहा है। घर इसका नहीं मेरा है। यह पहले घर में रहता था इस बात का इसके पास कोई प्रमाण नहीं है, पर मैं तो अब भी घर में रह रहा हूं।‘ बिल्ला दोनों की बातें सुनकर माला जपता हुआ बोला, ‘भाई, मैं वृद्ध हो गया हूं। बूढा होने के कारण नेत्रों की ज्योति घट गई है। कानों से भी कम सुनाई पड़ता है। तुम दोनों जो कुछ कहना चाहते हो, मेरे अधिक निकट आकर कहो, जिससे मैं तुम दोनों की बातें सुन सकूं।‘
तीतर और खरगोश को जब यह ज्ञात हुआ कि बिल्ला तो ना ही आंखों से देख सकता है और ना ही कानों से सुन सकता है, तो दोनों के मन का डर बिलकुल दूर हो गया। दोनों निर्भय और निश्चिंत होकर बिल्ले के अधिक निकट चले गए, पर जैसे ही दोनों बिल्ले के अधिक निकट पहुंचे, उस ने झपट्टा मारकर दोनों का काम तमाम कर दिया, दोनों बिल्ले के पेट में चले गए और सदा सदा के लिए उनके झगड़े का निपटारा हो गया।