History, asked by ramv2186, 10 months ago

चोल स्थानीय स्वशासन की उन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए जो आज भी प्रासंगिक है।

Answers

Answered by aman1910deep
4

Answer:

चोल शासकों की स्थानीय स्वशासन की विशेषताएँ

ग्रामीण प्रशासन के लिए सक्षम तथा सक्रिय स्वशासी संस्थाओं को स्थापित करना चोल प्रशासन की मुख्य विशेषता थी। दो प्रकार की ग्राम समितियाँ होती थीं-

  • उर या सभा
  • महासभा।

उर गाँव की सामान्य समिति थी। महासभा गाँवों में वृद्धों की सभा होती थी। महासभा के सदस्य अग्रहार कहलाते थे। गाँव की अधिकांश भूमि कर मुक्त थी। गाँव में प्राय: ब्राह्मण निवास करते थे, ये स्वशासी गाँव थे। प्रबंध समिति गाँव की देखरेख करती थी। गाँव के शिक्षित भू-स्वामियों के बीच से पर्ची के द्वारा सदस्यों को चुनाव होता था। सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष का होता था। अन्य समितियाँ भी थीं, जो लगान वसूलने, निर्धारित करने, व्यवस्था करने और न्याय प्रदान करने का कार्य करती थीं। कुछ महत्वपूर्ण समितियाँ व्यवस्थित ढंग से पानी दिलाने का कार्य करती थीं । महासभा को नई भूमि प्राप्त करने, ऋण प्राप्त करने तथा वसूलने के अधिकार थे। ग्राम स्वशासन की व्यवस्था एक उत्तम व्यवस्था थी, पर सामन्तवाद के विकास के साथ ही साथ ग्रामों के अधिकार सीमित हो गए।

Answered by saurabhgraveiens
1

प्रत्येक गाँव एक स्वशासित इकाई था। इस तरह के कई गाँवों ने देश के विभिन्न हिस्सों में एक कोर्राम  या नाडु  या कोट्टम  का गठन किया।

Explanation:

स्थानीय परिषद का गठन, उम्मीदवारों के लिए पात्रता और अयोग्यता, विधि चयन, उनके कर्तव्यों और उनकी शक्ति का परिसीमन। 850 - 1200 ई में शाही अवधि के दौरान चोल सरकार को इसकी विशिष्टता और नवीनता के लिए चिह्नित किया गया था। चोल पहले राजवंश थे जिन्होंने पूरे दक्षिण भारत को एक आम नियम के तहत लाने की कोशिश की और काफी हद तक अपने प्रयासों में सफल रहे। प्रशासन की चोल प्रणाली अत्यधिक संगठित और कुशल थी। राजा प्रशासन की केंद्रीय धुरी था और सभी अधिकार उसके हाथों में थे।

Similar questions