चिमाजी आप्पांची कामगिरी लिहा
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जब भारत में अंग्रेज, फ्रांस और डच लोग नावों द्वारा धीरे धीरे आ रहे थे। तब पुर्तगाली सेना भी भारत के गुजरात में पश्चिमी तट पर अपनी विशाल सेना के साथ थी और उससे युद्ध करना कठिन था। साथ ही वसई किले के कारण उनकी शक्ति और बढ़ गई थी। फिर भी चिमाजी अप्पा अपनी सेना के साथ पुर्तगाली सेना पर हमला कर उन लोगों को हटा दिया और पश्चिमी तट को पुर्तगाली शासन से मुक्त कराया। सन 1739 में बाजीराव प्रथम ने चिमाजी अप्पा को पुर्तगालियों को बेसीन से हटाने का आदेश दिया चिमाजी अप्पा ने पुर्तगालियों को कई पत्र लिखिए परंतु उसका जवाब उन्हें अच्छा नहीं लगा जिस कारण से उन्होंने कान्होजी आंग्रे के पुत्र और मराठा सरदारो को एकत्रित कर बेसिन के किले पर घेरा डाल दिया अंततः पुर्तगालियों को 1739 में अपने आप को आत्मसमर्पण करना पड़ा और बेसिन मराठो को दे दिया गया। पुर्तगाली धीरे धीरे अपना व्यापार बढ़ा रहे थे इस सब चीजों को मराठों को एक बार फिर विदेशी शक्तियों से खतरा हो रहा था और दुआ जबरन धर्म परिवर्तन कर रहे थे। इसके अलावा चिमाजी अप्पा ने 1736 में जंजीरा के सिद्दियो को भी पराजित किया और एक और सफल अभियान में अपनी भूमिका अदा की। 1740 ईस्वी में ही चिमाजी अप्पा की मृत्यु हो गई उनके भाई बाजीराव पेशवा की भी 1740 में रावेर खेड़ी नदी के किनारे मृत्यु हो गई थी बाद में चिमाजी अप्पा के पुत्र सदाशिव राव भाऊ आगे चलकर पेशवा बालाजी बाजीराव के दीवान नियुक्त हुए और 1761 में पानीपत के तृतीय युद्ध में उन्हें मराठा सेना की कमान दी गई हालांकि इस युद्ध में मारे गए परंतु उनका था आज भी भारतीय इतिहास में अंकित हैं |