चिन्तनीया हि विपदाम् आदावेव प्रतिक्रियाः
न कूपखननं युक्तं प्रदीप्ते वह्निना गृहे
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चिन्तनीया हि विपदां आदावेव प्रतिक्रिया।
न कूपखननं युक्तं प्रदीप्त वान्हिना गृहे॥
अर्थ : जब अपने घर में आग लग जाये, तब आग बुझाने के हेतु पानी के लिये कुँये को खोदना बिल्कुल युक्तिसंगत कार्य नही है। बिल्कुल उसी तरह जब कोई विपत्ति-संकट आये तब विपत्ति से निपटने के तैयारी करना सही नही है। कहने का भाव ये है, कि किसी भी संकट के लिये हर समय तत्पर रहने चाहिये।
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