चुनावी प्रक्रिया के आयामों को लिखिए
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चुनावी प्रक्रिया के आयाम
निर्वाचन प्रक्रिया से तात्पर्य संविधान में वर्णित अवधि के पश्चात पदो एवं संस्थाओ के लिए होने वाले निर्वाचनों की प्रारभं से अंत तक की प्रक्रिया से है। निर्वाचन प्रक्रिया की प्रकृति भारतीय संविधान के इस उपबंध द्वारा निर्धारित हु है कि लोकसभा अैार प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिए निर्वाचन 1951, राज्य पुर्नगठन अधिनियम सन 1956 और निर्वाचन आयाजे न नियम सन 1960-61 के द्वारा भी निवार्चन प्रक्रिया की प्रकृति को निर्धारित किया गया है।
निर्वाचन प्रक्रिया के विभिन्न सोपान
मतदाता सूचियों की तैयारी, मुद्रण और प्रकाशन-
निर्वाचन प्रक्रिया प्रारेभ होने से पूर्व मतदाता सूचियों में संशोधन किया जाता है। उन मतदाताओं, जिनकी मृत्यु हो चुकी है उनके नाम मतदाता सूचियों से काट दिए जाते है अज्ञैर मतदाता बनने की योग्यताएं रखने वाले नये मतदाताओं के नाम सूचियों में अंकित कर दिए जाते है। इस पक्रार मतदाता सूचियों का नवीनीकरण किया जाता है।
चुनाव की घोषणा-
चुनाव का प्रारंभ चुनाव की अधिसूचना से होता है। लाके सभा व राज्यसभा के लिए राष्ट्रपति, विधानसभाओं के लिए राज्यपाल, केन्द्र शासित प्रदेशों में उप राज्यपाल मतदाताओं को चुनाव के बारे में सूचना देते है। इस अधिसूचना का प्रकाशन चुनाव आयोग से विचार विमर्श करने के बाद सरकारी गजट में होता है।
नाामांकन पत्र-
आम चुनाव की अधिसूचना प्रकाशित होने के पश्चात चुनाव आयोग द्वारा नामांकित पत्र भरे जाने की अंतिम तिथि नामाकंन पत्रों की जांच की तिथि व नाम वापस लिए जाने की तिथि की घोषणा की जाती है। चुनाव प्रत्येक चुनाव के लिए नामांकन की एक अंतिम तिथि निश्चित करता है। नामांकन पत्रो की जांच की जाती है। इस समय अधिकारी गण इस बात की जांच करते है कि नामांकन पत्रो में सभी जानकारी या सूचनाएं ठीक है या नहीं। यदि नामांकन पत्र की किसी प्रविष्टि में शंका हो या को उम्मीदवार उस स्थान के लिए योग्य न हो तो चुनाव अधिकारी नामांकन पत्र को अस्वीकार कर सकती है। जांच पूरी होने के 2-3 दिन पश्चात नामांकन वापस करने की अंतिम तिथि होती है। कोई भी उम्मीदवार यदि चुनाव न लडने का निर्णय करे वह अपना नामांकन वापस ले सकता है।
चुनाव चिन्ह-
प्रत्येक राजनीतिक दल का एक विशिष्ट और सरलता से पहचानने योग्य चुनाव चिन्ह होता है। यह चिन्ह ऐसा होता है जिसको मतदाता आसानी से पहचान कर अपनी पसंद के उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कर सके। मतपत्र पर उम्मीदवारो के नामो के आगे उनका चुनाव चिन्ह छपा रहता है। इससे निरक्षर मतदाता भी आसानी से अपनी पसंद के उम्मीदवार का चयन कर सकता है। निर्वाचन आयागे प्रत्येक दल के लिए चनु ाव चिन्ह निश्चित करता है। जहां तक संभव हो आयोग दल की पसंद का चिन्ह भी स्वीकार कर लेता है। परंतु ऐसा करते समय निर्वाचन आयागे यह भी सुनिश्चित कर लेता है कि विभिन्न दलो के चुनाव चिन्ह मिलते जुलते तथा भ्रमात्मक न हो।
चुनाव प्रचार-
राष्ट्रपति ने 19 जनवरी 1992 को एक अध्यादेश निर्गत करके लोकसभा चुनाव तथा विधानसभा के निर्वाचनों में चुनाव प्रचार की न्यूनतम अवधि 20 दिन से घटाकर 14 दिन कर दी है। इस अवधि में प्रत्याशियों को अपने अपने पक्ष में प्रचार करने का समुचित अवसर मिलता है। यद्यपि चुनाव होने की संभावना के साथ ही विभिन्न राजनीतिक दल अपना प्रचार करना आरंभ कर देते है परंतु नाम वापसी की तिथि के पश्चात विभिन्न राजनीतिक दलो के प्रत्याशियों के सामने आ जाने पर चुनाव पच्र ार में गंभीरता और तीव्रता आ जाती है। इस अवधि में राजनीतिक दलो के द्वारा अपने अपने चुनाव घोषणा पत्र (Election manifesto) जारी किये जाते है जिनमें वे अपनी अपनी नीतियों एवं कार्यक्रमो को स्पष्ट करते है। चुनाव प्रचार में प्रत्येक उम्मीदवार अपने समर्थन में सभाएं करके, भाषण देकर, जुलुस निकालकर, पोस्टर लगाकर और वीडियो फिल्म दिखाकर अपना प्रचार करता है। मतदान समाप्त होने के 48 घटें पूर्व चुनाव पच्रार समाप्त हो जाता है।
मतदान-
मतदान के लिए निश्चित की ग तिथि को मतदान होता है। मतदान के दिन मतदाता मतदान कक्ष में जाते है और गुप्त मतदान की प्रक्रिया से अपने मताधिकार का प्रयोग करते है। जो मतदाता असावधान होते है वह मतपत्र पर गलत मोहर लगाकर या को भी मोहर लगाकर अपना मतपत्र बेकार कर देते है। यदि मतपत्र पर सही स्थान पर मोहर न लगाया हो तो वह मतपत्र जिन पर नियमानुसार मोहर न लगा ग हो निरस्त कर दिया जाता है। जब मतदान समाप्त हो जाता है तो मतपेटियो को मोहरबंद करके मतगणना केन्द्रो तक पहुचा दिया जाता है। अब चुनावो में इलेक्ट्रॉनिक वोंटिग मशीन का प्रयोग होता है। इसमें मतदाता अपने पसंद के प्रतिनिधि के नाम व चुनाव चिन्ह के सामने बटन दबाकर मत दते ा है।
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