Hindi, asked by sreevidya4955, 1 year ago

चुनाव सुधार पर निबंध | Write an essay on Election Reformation in Hindi

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Answered by sunilyadava07
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चुनाव लोकतात्रिक शासन का आधार है । स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव व्यवस्था लोकतंत्र को स्थायित्व और परिपक्वता प्रदान करती है । काफी समय से देश में चुनाव सुधारों की मांग की जाती रही ।

चुनाव के दौरान अपनाए जाने वाले भ्रष्ट तरीकों को समाप्त करने का प्रश्न सरकार के समक्ष काफी समय से विचाराधीन रहा । पिछले वर्षों में हुए अनुभवों ने चुनाव सुधार की तात्कालिकता पर जोर दिया । चुनाव आयोग ने भी कुछ सुझाव सरकार के पास भेजे ।

राजनैतिक दलों के नेताओं तथा अन्य प्रबुद्ध नागरिकों ने भी अनेक सुधारों की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट किया । सुधारों की आवश्यकता और उनके स्वरूप के बारे में अनेक मंचों से समय-समय पर ठोस विचार सामने आते रहे ।

सरकार ने चुनाव सुधार के मुद्दों के बारे में राजनैतिक -दलों के नेताओं के साथ विचार-विमर्श किया । इन सब बातों को ध्यान में रखकर सरकार ने दिसम्बर 1988 में संसद के दो विधेयक पास कराए-एक संविधान संशोधन विधेयक और दूसरा जन प्रतिनिधि विधेयक ।

उपरोक्त दोनों विधेयकों के द्वारा देश की चुनाव प्रणाली में महत्त्वपूर्ण और व्यापक सुधारों का प्रावधान किया गया है । नीचे हम कुछ महत्वपूर्ण सुधारों की चर्चा करेंगे । इन सुधारों को हम कई श्रेणियों में बाट सकते हैं, जैसे मतदाताओं सम्बन्धी, मतदान प्रणाली संबंधी, उम्मीदवारों सम्बन्धी, चुनाव के दौरान होने वाले भ्रष्टाचार संबंधी, चुनाव आयोग संबंधी, चुनाव खर्च संबंधी और राजनैतिक दलों संबंधी ।

इसी क्रम में हम इनकी चर्चा करेंगे:

1) सबसे बड़ा और युगान्तकारी संशोधन मतदाताओं के सम्बन्ध में है । अभी तक मतदाता के लिए 21 वर्ष आयु निर्धारित थी । अब इसे कम करके 18 वर्ष कर दिया गया । ऐसा इसलिए किया गया कि देश के युवक शिक्षित और प्रबुद्ध हैं, और देश की राजनैतिक प्रक्रिया में उन्हें सहभागी बनाना श्रेयस्कर होगा ।

 


Answered by coolthakursaini36
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                         "चुनाव सुधार"

बिना जनमत की प्रजातंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती I प्रजातंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था का नाम है, जहां सत्ता प्रजा के हाथ में होती है I प्रजा चुनाव के माध्यम से अपने प्रतिनिधि चुनती है और चुने हुए यही प्रतिनिधि शासन चलाते हैं।

भारत में प्रदेश स्तर पर विधानसभाओं और केंद्रीय स्तर पर लोकसभा के चुनाव प्रत्येक 5 वर्ष के पश्चात करवाने का विधान है I यदि किसी कारण से विधानसभा अथवा लोकसभा समय से पूर्व भंग करवा दी जाती है तो मध्यावधि चुनावों की व्यवस्था भी की जाती है। हमारे प्रजातंत्र की सबसे बड़ी शक्ति चुनावी ही है क्योंकि इन्हीं के माध्यम से अनेक बार सत्ता परिवर्तन हो चुका है।

जहां हमारे प्रजातंत्र को विश्व का सबसे बड़ा प्रजातंत्र होने का गर्व है, वहीं पर हमारी चुनाव प्रणाली में बुराइयां लगातार समाहित होती जा रही हैं I जो पूरे राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है। चुनाव सुधारों की चर्चा निरंतर होती रहती है परंतु धरातल पर कुछ कार्य नहीं होता है। आज हमारी चुनाव प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं।

चुनावों का अपराधीकरण सबसे बड़ी समस्या है पहले अपराधी प्रभावशाली नेताओं के कहने पर चुनावों में काम करते थे, उन्हें चुनाव जीताते थे I परंतु धीरे-धीरे उन्हें समझ आने लगा, इसमें चुनाव लड़कर सत्ता में आना अधिक लाभदायक है I इस प्रकार पहले चुनावों का अपराधीकरण हुआ था, अब अपराधियों का राजनीतिकरण होने लगा है । जाली वोटों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है जो कि लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है। कुल मिलाकर भारत में चुनाव प्राधिकरण के चलते अविश्वसनीय हो गए हैं मतदान केंद्रों पर कर्मचारियों से मारपीट की जाती है यहां तक कि उनकी हत्या की घटनाएं भी हुई हैं।

हमारी चुनाव प्रणाली की दूसरी बड़ी समस्या है धन के बढ़ते प्रभाव का। चुनाव पैसे का खेल बनते जा रहे हैं। पहले लोक सेवा के लिए लोग राजनीति में आते थे और अपने सेवा कार्यों के आधार पर चुनाव भी जीत जाते थे। अब लाखों के हिसाब से चुनाव पर खर्चा आता है, कालाधन बड़ी मात्रा में चुनावों को जीतने के लिए प्रयुक्त होता है राजनीतिक दल चुनाव लड़ने के लिए भ्रष्ट लोगों से धन लेने के लिए विवश हैं। सत्ता में आने के पश्चात भ्रष्ट लोगों की गैरकानूनी काम करना उनकी मजबूरी बन जाती है। सार्वजनिक जीवन में बढ़ते जा रहे भ्रष्टाचार का मूल कारण चुनावों में खर्च होने वाला धन है। चुनावों में होने वाली खर्च पर भी अंकुश लगना चाहिए और खर्च की सीमा चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए।

चुनाव जनमत का प्रतिनिधित्व करने वाले होने चाहिए। राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर राजनीतिक दल अपने चुनाव घोषणा पत्र तैयार करें और उसके आधार पर वोट मांगे। हमारे यहां जाति धर्म संप्रदाय और क्षेत्र के संकीर्ण दायरे में चुनाव प्रचार सिमट जाता है। चुनाव निष्पक्षता के आधार पर होनी चाहिए। जाति धर्म क्षेत्रवाद और ध्रुवीकरण की राजनीति नहीं होनी चाहिए नहीं तो देश टुकड़ों में बंट जाएगा।

चुनाव आयोग इन विषयों पर बहुत शक्ति से कार्य कर रहा है तथा चुनाव प्रक्रिया में पूर्ण रूप से पारदर्शिता लाने के लिए वचनवद्ध है, इसके बावजूद भी चुनाव प्रक्रिया में धांधली के कई आरोप आए दिनों हम अखबारों और न्यूज़ चैनलों में सुनते हैं।

चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं भ्रष्टाचार से मुक्त होंगे तभी आम आदमी का विश्वास प्रजातंत्र में बढ़ेगा, प्रजातंत्र में आस्था बनी रहे और लोग मतदान से अपनी सरकार चुनें I


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