चुनावी दौर एक चिंतन निबंध
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अभी हाल में भारत की लोकसभा के चुनाव संपन्न हुये उसमें कई बाते उभरकर आईं।
चुनावों में पहले भी धन-बल का प्रयोग किया जाता रहा है और हर चुनाव में हिंसा भी अक्सर देखने के मिलती है। पर अब देखा गया है कि चुनाव धन की शक्ति का उपयोग बहुत बड़ा रूप ले चुका है। चुनाव अब एक पैसे मशीनरी में तब्दील हो चुके हैं। चुनाव का बजट इतना बढ़ चुका है जितनी किसी छोटे देश की अर्थव्यवस्था होती है।
हाल ही में संपन्न हुये लोकसभा चुनावों में कई अच्छी और बुरी बाते उभरकर सामने आयीं। पहले के चुनावों की तरह अब बूथ कैप्चरिंग की घटनाओं में कमी आई। ऐसा इस कारण हुआ है कि अब बैलेट पेपर की जगह ईवीएम का प्रयोग होने लगा है और साथ ही प्रशासन भी अधिक चुस्त-दुरस्त हो गया है।
चुनाव आयोग की भूमिका को भी नकारा नही जा सकता जिसने इतने बड़े चुनावों सफलता पूर्वक संपन्न कराया। किसी भी तरह की धांधली को नही होने दिया। बेलगाम नेताओं पर अंकुश लगाया।
चुनावों में नेताओं द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली भाषा का स्तर गिरा है और एक-दूसरे पर लांछन लगाने में नेताओं ने कोई कसर नही छोड़ी।
फिर भी ये लोकतंत्र की खूबसूरती है कि तमाम उतार-चढावों के बावजूद चुनाव सफलता से संपन्न हुये और लोकतंत्र की विजय हुई।