चंपा की सरलता को अपने शब्दों में लिखिए।
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चंपा निरक्षर है जो वह पढ़ने लिखने को व्यर्थ समझती है। अक्षरों के लिए कवि 'काले-काले' विशेषण का प्रयोग करके शिक्षा-व्यवस्था की कलई खोलता है। कविता की नायिका चंपा शोषक व्यवस्था के विरोध में खड़ी हो जाती है वह 'कलकत्ते पर बजर गिरे' कहकर अपने जीवन की सुरक्षा के प्रति सचेत होने का संकेत दे जाती है।
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champa ak sarl or sushil laadki hai vah sant hai or chanclhai.
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