Social Sciences, asked by piyush531823, 10 months ago

चौरी-चौरा कांड क्या है?​

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Answered by abhijitgupta2
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Explanation:

चौरी-चौरा कांड, आजादी के आंदोलन का एक परित्यक्त अध्याय। हमारे राष्ट्रीय इतिहास का एक लावारिस पन्ना जिसकी विरासत पर किसी का कोई दावा नहीं। महात्मा गांधी ने न सिर्फ इसे 'चौरी-चौरा का अपराध' बताकर किनारा कर लिया बल्कि ये कलंक भी चौरी-चौरा के ही माथे है कि बापू को असहयोग आंदोलन इसी कांड के चलते स्थगित करना पड़ा। ये कथित कलंक ही है जिसके चलते चौरी-चौरा कांड का कभी कोई ठोस विश्लेषण नहीं हुआ। हमारी स्मृतियों में बस ये एक ऐसी वारदात की तरह दर्ज है जिसमें एक थाना फूंक दिया गया, थाने में मौजूद 23 पुलिसवाले जल मरे और तारीख थी 4 फरवरी, 1922। उपेक्षा की इंतेहा देखिए कि बहुत सी स्मृतियों में लंबे समये तक ये वारदात 5 फरवरी की तारीख पर भी दर्ज रही, वो भी तब जबकि इसका मुकदमा गोरखपुर जिला जेल से लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के आखिरी फैसले तक तकरीबन एक साल तक लगातार चला। बहस और सुनवाई के दौरान लगातार ये बात सामने आती रही कि ये घटना कांग्रेसी वालंटियर्स के सविनय अवज्ञा आंदोलन का नतीजा थी, मगर कांग्रेसी लगातार इसे गुंडों का कृत्य बताकर पल्ला झाड़ते रहे। ये कांग्रेस का बेगानापन ही था कि चौरी-चौरा की घटना के सालों बाद तक इस कांड के प्रभावित परिवारों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के लाभ नहीं मिलते थे। 1957 में तत्कालीन कलक्टर के ओएसडी ने लीगल डिपार्टमेंट को एक चिट्ठी लिखकर बताया कि 'दस्तावेजों में चौरी-चौरा की घटना के राजनीतिक होने का कोई प्रमाण नहीं है। ऐसे में बार-बार पेंशन की दरियाफ्त कर रहे लोगों को क्या जवाब दिया जाए'। चौरी-चौरा कांड में सेशन जज ने सभी 172 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने काफी रहमदिली दिखाई और 19 मुख्य आरोपियों को ही फांसी की सजा दी, बाकी को कैद। लेकिन चौरी-चौरा थाने में 23 पुलिसवालों की स्मृति में तो पार्क बनाया गया मगर इन शहीदों की याद में लंबे समय तक कोई स्मारक नहीं था जो बाद में राजीव गांधी के कार्यकाल में बन सका। दरअसल 1972 तक तो चौरी-चौरा की घटना को देखने का नजरिया ही नहीं विकसित हो सका था। 50 साल बाद उसे किसी तरह राष्ट्रीय आंदोलन में गोरखपुर का योगदान के नाम पर संलग्नक की तरह शामिल किया गया। लेकिन जब किसी घटना को उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ देखा जाता है तो बहुत सी और चीजें भी सामने आती हैं। इस निरपेक्ष खुदाई में तमाम मलबा और मवाद भी बाहर आता है। सवाल है कि कहीं इसी मलबे और मवाद से डरकर तो इतिहास के इस अहम अध्याय की उपेक्षा नहीं की जाती।

दरअसल अगर आप इस कांड की सतही जानकारी लेने की बजाए एक पर्त भी नीचे जाएं तो कुछ चौंकाने वाले सत्य रहस्योद्घाटित होते हैं। मसलन इस कांड में शामिल दोषी/सजायाफ्ता तमाम लोग निचली कामगार जातियों के थे और उनके अलावा बड़ी संख्या में मुसलमान।

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