१. चोरः चौर्यार्थ दरिद्रगृहं प्रविशति ।। न
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श्रेष्ठ मनुष्य जो-जो आचरण करता है, दूसरे मनुष्य वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो कुछ प्रमाण देता है, दूसरे मनुष्य उसीके अनुसार आचरण करते हैं।
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chor jo hota hota hai vo apne jeevan mai kabhi safal nahi ban pata
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