चारुचंद्र की चंचल किरणें 1 खेल रहो है जल - थल में , स्वच्छ चाँदनी विठो हुई है । आनि और अवर तल में । पुलर प्रकट करती है धरती हरित तृणों को नोको से . मानो झूम रहे है तरु भो मद पवन के झोका से । क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह है क्या ही निस्सा निशा , है स्वच्छद - सुमद गध वह . निरानद है कौन दिशा ? बंद नहीं , अब भी चलते हैं पर कितने एकात भाव से कितने शांत और चुप - चाप ।है बिखेर देती वसुंधरा मोती सबके सोने पर , रवि बटोर लेता है उनको सदा सवेरा होने पर । और विराम - दायिनी अपनी संध्या को दे जाता है , शून्य - श्याम तनु जिससे उसका नया रूप छलकाता है ।
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1सूर्य सवेरा होने पर क्या बटोर लेता है ? 2किरणें चंचल कैसे होती हैं ?
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1. ravi
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2. arth se samajh lijiye...
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