Hindi, asked by saloni6563, 1 year ago

चारु चंद्र की चंचल किरणें कविता की व्याख्या (भावार्थ)

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Answered by bhatiamona
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Answer:

चारु चंद्र की चंचल किरणें कविता  मैथिलीशरण गुप्त दद्वारा लिखी गई है |

गुप्त जी कहते हैं कि सुन्दर चन्द्रमा की किरणें जल और थल में फैली हुई हैं। ..... वे चाँदनी रात का वर्णन करते हुए कहते हैं कि ”चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल थल में स्वच्छ चाँदी बिछी हुई हैं, अवनि और अम्बर तल में। लक्ष्मण को पहरा देते हुए देखकर कवि कहता है कि वीर व्रत धारण करने वाला यह युवक अपनी नींद त्यागकर किस व्रत की साधना में लीन है?  यह इस कुटी की रक्षा के लिए शरीर की परवाह नहीं कर रहा है अर्थात् अपने शरीर को विश्राम नहीं दे रहा है और सब प्रकार से अपने मन को इस कुटी की रक्षा में लगाए हुए है। पंचवटी के प्राकृतिक सौंदर्य को निहारते हुए लक्ष्मण अपने मन में सोचते हैं कि यहाँ कितनी स्वच्छ और चमकीली चाँदनी है और रात्रि भी बहुत शांत है। स्वच्छ, सुगंधित वायु मंद-मंद बह रही है। यदि लोग अपना तथा दूसरों का भला स्वयं ही करने लगें और इसके लिए दूसरों का मुंह  न देखें तो यह संसार कितना सुंदर और सुखद हो जाएगा।

Answered by CarliReifsteck
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चारु चंद्र की चंचल किरणें कविता की व्याख्या :

चारु चंद्र की चंचल किरणें कविता में कवि, भगवान श्रीराम , माता सीता और भाई लक्ष्मण द्वारा वनवास के समय पंचवटी में बिताई एक चाँदनी रात का वर्णन कर रहे है ,

वे चाँदनी रात का वर्णन करते हुए कहते हैं कि, चन्द्रमा की मनोरम किरणें जल और थल में फैली हुई हैं।

लक्ष्मण को पहरा देते हुए देखकर कवि कहता है कि वीर व्रत करने वाला यह पुरुष अपनी नींद त्यागकर किस व्रत की साधना में लगा है?  यह इस कुटी की रक्षा के लिए अपने शरीर की परवाह नहीं कर रहा है अर्थात् विश्राम भी नहीं कर रहा है और सब तरह से अपने मन को इस कुटी की सुरक्षा में लगाए हुए है। पंचवटी के प्राकृतिक सुंदरता को निहारते हुए लक्ष्मण अपने आप से कहते हैं कि यहाँ कितनी साफ शुद्ध और चमकदार चाँदनी है और रात्रि भी बहुत निस्तब्ध है। स्वच्छ, सुगंधित वायु धीरे धीरे बह रही है।

यदि लोग अपना तथा दूसरों का भला स्वयं ही सोचने समझने और करने लगें तो यह संसार कितना आकर्षक और सुहावना हो जाएगा।

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