चारु चंद्र की चंचल किरणें
खेल रही हैं जल-थल में।
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है
अवनि और अंबर तल में ।।
पुलक प्रगट करती है धरती
हरित तृणों की नोकों से।
मानो झूम रहे हैं तरु भी
मंद पवन के झोंकों से।
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