चीर की चटक औ लटक नवकुण्डल की
भौंह की मटक नेह आँखिन दिखाउ रे।
मोहन सुजान, गुन-रूप के निधान फेरि
बाँसुरी बजाइ तनु-तपन सिराउ रे।
एहो बनवारी बलिहारी जाऊँ तेरी आजु
मेरी कुंज आइ नेकु मीठी तान गाउ रे।
नन्द के किसोर चितचोर मोरपंख वारे
बंसी वारे साँवरे पियारे इत आउ रे।
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shringar rass
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