चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है - का क्या तात्पर्य है ?
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आज नए समाज निर्माण के लिए हमें नीव की ईट चाहिए। पर अफसोस है कि कंगूरा बनने के लिए चारों ही होड़ा-होड़ी मची है, नीव की ईट बनने की कामना लुप्त हो रही है। अर्थात देश की प्रगति के लिए काम करनेवालों की संख्या घट रहा है और अपना स्वार्थ के लिए काम करने वालों की संख्या दिन-व-दिन बढ़ रहा है।
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what is the question...............
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