Hindi, asked by lalitasahu0828, 4 hours ago

चोरी और प्रायश्चित निबंध का उद्देश्य लिखिए?

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Answered by wamabharamri
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Explanation:

प्रस्तावना– किसी व्यक्ति की किसी वस्तु या धन संपत्ति को चुराना चोरी कहलाता है. चोरी एक अपराध है. हमें कभी भी छोटी चोरी भी नहीं करनी चाहिए क्योकि छोटी छोटी चोरी करने की आदत आगे चलकर बड़ी बन जाती है और फिर वह व्यक्ति एक अपराधी बन जाता है.

चोरी करने के बाद जब व्यक्ति को यह एहसास होता है कि वह गलत कर रहा है और उसे सुधरना चाहिए तो एक तरह से वह प्रायश्चित करता है इसे ही प्रायश्चित कहते है.

चोरी और प्रायश्चित के बारे मे कहानी – चोरी और प्रायश्चित के बारे में विस्तृत रूप से समझने के लिए अब हम जानेंगे एक घटना के बारे में । एक गांव में एक परिवार था जो बहुत ही धनी परिवार था । उस परिवार मे दादा , दादी जी , एक बच्चा और उस बच्चे की माता पिता थे ।

वह बच्चा धीरे-धीरे बड़ा हुआ । जब बच्चा बड़ा हुआ तब वह अपने मित्रों के साथ स्कूल में पढ़ाई करने के लिए प्रतिदिन जाता था । उस बच्चे का नाम मोहन था ।

जब मोहन अपने मित्रों के साथ खेलने के लिए जाता था तब मोहन को खेलने का चस्का लग गया था । मोहन और उसके सभी मित्र स्कूल जाने की लिए घर से निकलते थे परंतु वह स्कूल न जाकर रास्ते में खेलते रहते थे । उनका पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगता था । धीरे-धीरे समय बीतता गया । जब कई समय बीत गया तब मोहन और उसके सभी मित्र स्कूल घूमने के लिए गए थे ।

स्कूल के शिक्षक ने उन सभी को स्कूल ना आने पर सजा दी थी और सभी को 10 का फाइन स्कूल में जमा कराने के लिए कहा था । अब मोहन और उसके सभी मित्र परेशान हो गए कि अब हम सभी 10 रुपए कहां से लेकर आएंगे ।

इस परेशानी के कारण मोहन और उसके सभी मित्र परेशान रहने लगे थे । एक बार जब सुबह मोहन घर के बगीचे में खेल रहा था तब मोहन ने यह देखा कि उसके दादाजी घर के अंदर जा रहे हैं और मोहन भी दादाजी के पीछे घर के अंदर चला गया था ।

जब मोहन के दादाजी घर की एक अलमारी में पैसे रख रहे थे तब मोहन ने दादा जी को पैसे रखते हुए देख लिया था । मोहन के दिमाग में यह आइडिया आया की दादा जी के द्वारा जो पैसे अलमारी में रखे गए हैं उन पैसों को उठाकर स्कूल के टीचर को दे दूंगा ।

इसके बाद मोहन ने दादा जी के पैसे चुराकर स्कूल का फाइन भर दिया था ।जब दादा जी अलमारी में रखे हुए पैसे लेने के लिए गए तब दादा जी को पैसे वहां पर नहीं मिले थे । इसके बाद दादा जी का पूरा शक घर के नौकर पर गया था । दादाजी ने घर के नौकर पर शक करके उस नौकर को घर से निकाल दिया था ।

जब मोहन के पेपर हुए तब वह पेपर देने के लिए स्कूल गया था । परंतु मोहन ने पढ़ाई की ही नहीं थी जिसके कारण वह ठीक तरह से पेपर नहीं दे पाया था । जब परीक्षा का परिणाम स्कूल में घोषित किया गया तब मोहन और उसके सभी मित्र फेल हो गए थे जिसके बाद मोहन बहुत परेशान हो गया था ।

मोहन को यह डर लग रहा था कि यदि घर पर यदि फेल होने की बात पता चली तो उसको सजा दी जाएगी । इसके बाद मोहन ने यह निश्चय किया कि मैंने जो गलत कार्य किए हैं उन सभी के बारे में मैं अपने परिवार वालों को अवश्य बताऊंगा । मैं अपनी गलती का प्रायश्चित अवश्य करूंगा । यह सोचकर मोहन घर पर गया ।

इसके बाद मोहन ने सबसे पहले अपने दादा जी से माफी मांगने के लिए चला गया और दादा जी के पैर पकड़कर रोने लगा था । दादा जी ने उसे उठाया और कहा कि तू रो क्यों रहा है । मोहन ने दादा जी को सभी बात बता दी थी ।

जब मोहन दादा जी को यह बता रहा था कि मैं अपने मित्रों के साथ जब स्कूल पढ़ने के लिए जाता था तब हम सभी मित्र स्कूल न जाकर रास्ते में खेलते रहते थे जिसके कारण हम सभी ने पढ़ाई नहीं की थी । जब हम 1 दिन स्कूल पढ़ने के लिए गए तब स्कूल के शिक्षक ने हम सभी को सजा दी और 10 फाइन भरने के लिए कहा था ।

हमारे पास पैसे नहीं थे पर जब मैंने दादा जी आपको अलमारी में पैसे रखते हुए देखा तब मैंने आपके पैसे चुराकर स्कूल का फाइन भर दिया था । जब हम स्कूल की परीक्षा देने के लिए गए तब हम स्कूल की परीक्षा ठीक तरह से नहीं दे पाए जिसके कारण हम सभी फेल हो गए है ।

मोहन अपने परिवार के सभी लोगों से माफी मांगने लगा और दादाजी और उसके परिवार ने जब देखा कि मोहन को अपनी गलती का एहसास हुआ है, उसने जो गलती की है उस गलती का प्रायश्चित कर चुका है तब दादाजी और उसके पूरे परिवार ने मोहन को माफ कर दिया था ।

कहने का तात्पर्य यह है कि चोरी करना तो आसान लगता है लेकिन चोरी करने से हमारा सिर्फ नुकसान होता है.

उपसंहार- हम सभी को अच्छी अच्छी आदतें डालनी चाहिए. हमें बुरी आदतों से दूर रहना चाहिए और बुरे लोगो से भी दूर रहना चाहिए. इन्सान जब एक बार चोरी करता है तो उसे एक तरह से लत लग जाती है. इस बुरी लत से निकलना बहुत जरूरी होता है. अपनी गलतियों को स्वीकार करके प्रायश्चित करना ही एक मात्र रास्ता है.

Answered by bhatiamona
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‘चोरी और प्रायश्चित’ निबंध का उद्देश्य ये है कि यदि हमसे यदि कोई गलती हो जाये तो समय रहते उसमें सुधार करके उसे कबूल करके उसका प्रायश्चित कर लेना चाहिए।

व्याख्या :

‘चोरी और प्रायश्चित’ कहानी महात्मा गांधी के बचपन से संबंधित एक घटना है। जब उन्होंने 13 वर्ष की आयु में अपने एक रिश्तेदार के साथ बीड़ी पीने का शौक लगा लिया था। उनके काका को बीड़ी पीने की आदत थी। इसी कारण वह अपने काका फेंके के हुए बीड़ी के ठूंठ को चुराकर पीने लगे। बाद में उन्होने नौकर के पैसे चुराकर बीड़ी खरीदना शुरु कर दिया। नौकर की जेब से पैसे चुराए बाद में उन्हें एहसास हुआ कि चोरी करना गलत बात है तो वे दोनो आत्मग्लानि में मंदिर जाकर धतूरे के बीज खाकर आत्महत्या करने की कोशिश करने लगे लेकिन उनसे ये काम नही हुआ।

उन्होंने 13 से 15 वर्ष की आयु तक के जीवन  में कई चोरियां कीं। कभी अपने भाई के पैसे चुराए तो कभी दादाजी के पैसे चुराए। इन सब बातों का उन्हें बेहद अफसोस हुआ। जब गांधीजी की अंतरात्मा धिक्कारने लगी तब उन्होंने अपने पिताजी को खत लिखकर अपनी सारी चोरियों को कबूल करते हुए उनसे माफी मांगी और उनके पिताजी ने उन्हें माफ कर दिया। इस तरह उन्होंने चोरी की आदत का प्रायश्चित किया।

यही इस कहानी का सार है कि जिंदगी में हमसे यदि कोई गलती हो जाती है तो हमें समय रहते उसको स्वीकार करके उसका प्रायश्चित करना चाहिए।

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