चारित्र बल पर निबंध लिखे
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व्यक्ति का आचरण या चाल चलन चरित्र कहलाता है. शक्ति का कार्यकारी रूप बल हैं. आचरण और व्यवहार में शुद्धता रखते हुए द्रढ़ता से कर्तव्य पथ पर बढ़ते रहना चरित्र बल है. यूनानी साहित्यकार प्लूटार्क के शब्दों में चरित्र बल लेवल दुदीर्घकालीन स्वभाव की शक्ति हैं.
चरित्र बल ही मानवीय गुणों की मर्यादा है. स्वभाव और विचारों की द्रढ़ता का सूचक हैं. तप त्याग और तेज का दर्पण तथा सुखमय सहज जीवन जीने की कला हैं. आत्म शक्ति के विकास का अंकुर है. सम्मान और वैभव प्राप्ति का सौपान हैं. चरित्र बल अजेय है, भगवान को परम प्रिय है और हे संकट का सहारा. उनके सामने रिद्धिया सिद्धियाँ तक तुच्छ हैं. वह ज्ञान, भक्ति और वैराग्य से परे है. विद्धता उसके मुकाबले कम मूल्यवान है. चरित्रवान की महत्ता व्यक्त करते हुए शेक्सपियर लिखते है.
उसके शब्द इकरारनामा हैं उसकी शपथे आप्तवचन है, उसका प्रेम निष्ठापूर्ण हैं. उसके विचार निष्कलंक हैं. उसका ह्रदय छल से दूर है जैसा कि स्वर्ग पृथ्वी से.
चरित्र बल जन्मजात नहीं होता है, यह तो मानव द्वारा निर्मित स्वयं की चीज हैं. सेमुअल स्माइल की धारणा है कि आत्म प्रेम, प्रेम तथा कर्तव्य से प्रेरित किये गये हैं. बड़े बड़े कार्यों से ही चरित्र बल का निर्माण होता हैं. स्वामी शिवानन्द का मत है कि विचार वें इटे हैं जिससे चरित्र बल का निर्माण होता हैं. गेटे का विचार है कि चरित्र बल का निर्माण संसार के कोलाहल में होता हैं.
सच्चाई तो यह है कि अन्य गुणों का विकास एकांत में भली भांति संभव हैं पर चरित्र बल के उज्ज्वल विकास के लिए सामजिक जीवन चाहिए. सामजिक जीवन ही उसके धैर्य, क्षमा, यम, नियम अस्तेय पवित्रता सत्य एवं इन्द्रिय निग्रह की परीक्षा की भूमि हैं. कठिनाइयों को जीतने वासनाओं का दमन करने और दुखों को सहन करने से चरित्र बल शक्ति सम्पन्न होगा. उस शक्ति से दीप्त हो चरित्र अपने व्यक्तित्व का उज्ज्वल रूप प्रस्तुत करेगा.
प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक सैमुअल स्माइल्स कहते है कि चरित्र बल पर मनुष्य दैनिक कार्य, प्रलोभन और परीक्षा के संसार में द्रढ़तापूर्वक स्थिर रहते हैं और वास्तविक जीवन की क्रमिक क्षीणता को सहन करने के योग्य होते हैं. इतिहास इसका साक्षी है. बालक हकीकतराय, गुरुगोविन्दसिंह के सपूतों ने अपने चरित्र बल के सहारे ही मुस्लिम धर्म को स्वीकार करने का प्रलोभन स्वीकार नहीं किया. परिणामस्वरूप जीवन की संघर्ष आहुति दे दी.
स्वामी विवेकानंद का मत हैं चरित्र बल ही कठिनाई रुपी पत्थर की दीवारों में छेद कर सकता हैं. स्वयं स्वामी विवेकानंद ने अपने चरित्र बल से शिकागों की यात्रा की कठिनाई न केवल पार की, अपितु विश्व में वैदिक धर्म की ध्वजा को फहराया., महात्मा गांधी के चरित्र बल ने क्रूर अंग्रेजी सत्ता की प्राचीर में छेड़ ही नही किया, उसको ध्वस्त ही कर दिया. लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने अपने चरित्र बल पर इंदिरा गांधी के आपातकाल में सेंध ही नहीं लगाई, उसके लाक्षागृह को भस्म ही कर दिया.
चरित्र बल मानव जीवन की पूंजी हैं. विद्या के समान जितना इसको खर्च करेगे, समाज और राष्ट्र कार्य में अर्पित करेगें, उतना ही चरित्र बल बढ़ेगा. इस पूंजी के रहते व्यक्ति सांसारिक सुख से निर्धन नहीं हो सकता है और एश्वर्य से वंचित नहीं रह सकता हैं.