चिरह भुवंगम तन बरी, मंत्र न जागे कोइ ।
गम वियोगी ना जिवे, जिय, जिवे तो चौरा होइ ।।
'विरह मुबंगन' का तात्पर्य क्या है?
'जिवे तो बीस हार का आशय क्या है ?
बीता
गम का सियाग मान होता है ?
बिरही मनुष्य की स्थिति कैसी होती है।
SHAREE
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Answer:
बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई।
राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।।
बिरह : बिछड़ने का दुःख।
भुवंगम : भुजंग , सांप।
तन बसै : मन में रहता है।
मन्त्र न लागै कोई : कोई उपचार कार्य नहीं करता है।
बौरा: पागल।
इस दोहे का हिंदी भावार्थ : विरह की वेदना (बिछड़ने का दुःख ) जिस प्रकार किसी व्यक्ति को मन ही मन काटती रहती है, उसे कोई मंत्र (उपचार) भी नहीं लगता है, ऐसे ही राम से प्रेम करने वाले व्यक्ति को भी मन ही मन संताप रहता है (मन में विरह का सांप काटता रहता है ) और उसका जीवित रहना सम्भव नहीं होता है, यदि वह जीवित रह भी जाए तो पागल के समान ही रहता है। पागल के समान इसलिए बताया गया है क्योकि यह जगत 'माया ' की भाषा को समझता है, माया के इतर किये गए कार्य और व्यवहार को समाज अव्यवहारिक और असामान्य मानते हुए उस व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता पर शक करके उसे पागल कहने लगते हैं। वस्तुतः ईश्वर के रंग में रंगा बैरागी सबसे जुदा होता है तभी तो बुल्ले शाह कहते हैं, मैं क्यों ना पांवो में घुंघरू बाँध के मुरशद को मनाऊँ।
यह उत्तर आपकी सहायता करेगा।