चूरन बेचने वाले भगत जी को लेखक अपने जैसे विद्वानों से भी श्रेष्ठ विद्वान क्यों मान ता है?
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¿ चूरन बेचने वाले भगत जी को लेखक अपने जैसे विद्वानों से भी श्रेष्ठ विद्वान क्यों मानता है?
✎... चूरन बेचने वाले भगत जी को लेखक अपने जैसे विद्वानों से श्रेष्ठ विद्वान इसलिए मानता है, क्योंकि भगत जी बेहद संतोषी स्वभाव के थे। वह आज के बाजारवाद से प्रभावित नहीं थे। वह चूरन बेचने का कार्य करके एक निश्चित एवं निर्धारित आय ही अर्जित करते थे, यानी उन्होंने छह आने से ज्यादा नहीं कमाने का संकल्प लिया था। इस तरह उन्हें नित्यप्रति छः आने से ही संतोष हो जाता था। वे बाजारवाद के फेर में नहीं पड़ते थे। वे संतोष की भावना को अपनाकर बड़े-बड़े विद्वानों से श्रेष्ठ विद्वान थे, क्योंकि उन्होंने अपने अंदर आत्मसंयम विकसित कर लिया था, जोकि बड़े-बड़े विद्वान नहीं कर पाते। इसलिये लेखक नें चूरन बेचने वाले भगतजी को अपने जैसे विद्वानों से श्रेष्ठ विद्वान कहा है।
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