Hindi, asked by asharazz801, 7 hours ago

चूरन वाले भगत जी से प्रकृति की शिक्षा मिलती है संतोषी lalchiप्रवृत्ति की शिक्षा मिलती है ​

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Answered by shishir303
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लेखक के एक पड़ोसी भगतजी थे, उनके घर लेखक ने देखा के कि वे बेहद संतोषी स्वभाव के थे। आज के बाजारवाद के युग में ऐसे लोग भी होते हैं ये सोचकर लेखक आश्चर्यचकित रह गये। लेखक के घर में एक भगतजी रहते थे। जो चूरन बेचने का काम करते थे। उनका एक सिद्धांत ताकि वह केवल 6 आने से ज्यादा नहीं कमाते थे यानी अगर उन्होंने छह आने कमा लिए तो वह उस दिन चूरन बेचना बंद कर देते और जो भी चूरन बच जाता वह बच्चों में मुफ्त बांट देते थे। इस तरह बेहद ही संतोषी स्वभाव के थे। वह बाजार बाद के फेर में नहीं पड़े थे। वे चाहते तो बाजारवाद के फेर में आकर बहुत कुछ कमा सकते थे, क्या कुछ उनके घर पर नहीं होता, लेकिन उनके घर पर कुछ नहीं था क्योंकि उनमें आत्म संतोष था।

उनकी इस प्रवृत्ति से हमें आत्मसंतोष की शिक्षा मिलती है कि संतोष से बड़ा कोई आनंद नही है।

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