चौसर के खेलने किस प्रकार पाडवों का जीवन बदल दिया?
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देखिये दो बातें है पहला की अगर युद्ध नियति है तो फिर युद्ध तो होंता ही फिर चाहे भले ही,
- भीष्म प्रतिज्ञा न् करते,
- अम्बा का हरण न् होता,
- धृतराष्ट्र अंधे न् होते,
- कुंती कर्ण को न् त्यागती,
- पांडु को श्राप न् मिलता,
- शकुनि हस्तिनापुर नही आता,
- द्रोण का तिरस्कार द्रुपद द्वारा न् होता,
- द्रौपदी का जन्म आग से न् होता,
- जुआ न् खेला जाता,
- चीर हरण न् होता.
ऐसे कई कारण थे जो युद्ध का कारण बने। ऐसा लगा जैसे की हर कारन ने युद्ध की पृष्टभूमि तैयार की हो। यही नियति होती है जिससे खुद भगवन राम भी न् बच पाये।
अब दूसरी तरह से देखा जाये तो क्या यह युद्ध वास्तव में कर्ण के ऊपर निर्भर था? नहीं। पर हा यह युद्ध दुर्योधन ने कर्ण के भरोसे ही लड़ा।
अगर कर्ण को पहले ये बात पता चलती की द्रौपदी उसके अनुजे की पत्नी है तो शायद वो उसका तिरस्कार नही करता पर इससे भी क्या होता, पांडव अपना हक तो मांगने आते और अहंकारी दर्योधन एक युद्ध की दीवार खड़ा कर देता।
अब मन लीजिये युद्ध से ठीक पहले कर्ण ने सत्य बताया होता तो भी वो दुर्योधन के पक्ष से ही लड़ता भले ही वो सेनापति नही बनाया जाता पर युद्ध तो होता।
युद्ध एक ही स्तिथि में टल पता अगर कृष्ण चाहते और कृष्ण ने दुर्योधन को मौका दिया था पर दुर्योधन वो भी ले न् सका।
धन्यवाद।
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Explanation:
हस्तिनापुर राज्य को दो बराबर टुकडो़ में बाँटकर एक भाग, जो की पुर्णतः बंजर था, पाण्डवों को दे दिया गया, जिसे उन्होनें अपने अथक प्रयासों से इंद्रप्रस्थ (वर्तमान दिल्ली) नामक सुंदर नगरी में परिवर्तित कर दिया। शीघ्र ही वहाँ की भव्यता कि चर्चाएँ दूर्-दूर तक होने लगीं। युधिष्ठिर द्वारा किए गए राजसूय यज्ञ के अवसर पर, दुर्योधन को भी उस भव्य नगरी में जाने का अवसर मिला। वह राजमहल की भव्यता देख रहा था, कि एक स्थान पर उसने पानी की तल वाली सजावट को ठोस भूमि समझ लिया और पानी मे गिर गया। यह देखकर द्रौपदी हंसने लगी और उसने दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा कहा। इसे दुर्योधन ने अपना अपमान समझा और वह हस्तिनापुर लौट आया।