Hindi, asked by mrunalisherki, 15 days ago

चिंता चेतना की चिता जलाती है इस पर अपना विचार लिखें​

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Answered by bhatiamona
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चिंता चेतना की चिंता जलाती है, क्योंकि चिंता मनुष्य को अंदर ही अंदर खाये जाती है और मनुष्य की बुद्धि को कुंद कर देती है। मनुष्य अपनी सोचने समझने की क्षमता को खो देता है। वह दिनभर अपनी चिंता में ही मग्न रहता है और सकारात्मक बातें सोचना छोड़ देता है। धीरे धीरे ऐसा होता है कि चिंता, घुन की भांति उसके शरीर को खोखला करती रहती है। वह तन और मन दोनों वजह से खोखला होता रहता है।

यही कारण चिन्ता चेतना की चिता जलाती है क्योंकि चिंता बुद्धि और विचार को नष्ट कर देती है। वह सोचने समझने की शक्ति को खा जाती है। चिंता ही चिता की ओर ले जाने का माध्यम बन जाती है। वह चाहे शारीरिक रूप से हो या फिर मानसिक रूप से हो।

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