चींटी को अक्षय चिंगारी क्यों कहा जाता है
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वह जीवन की कभी नष्ट न होने वाली चिंगारी है। चींटी एक अतिलघु प्राणी है, परन्तु उसमें जीवन की सम्पूर्ण ज्योति जगमगाती है। कवि कहता है कि उसका शरीर बड़ा नहीं, अपितु वह तिल के समान अत्यन्त छोटा है। इतनी छोटी होते हुए भी चींटी शक्ति से भरी हुई इधर-उधर घूमती रहती है।
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कलापक्ष
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मधुमक्खी
कलापक्ष या हायमेनोप्टेरा (Hymenoptera; हायमेन (hymen) = झिल्ली; टेरोन (pteron) = पक्ष या पंख) के अंतर्गत चींटियाँ, बर्रे (wasps), मधुमक्खियाँ और इनके निकट संबंधी तथा आखेटि पतंग आते हैं। लिनियस ने 1758 ई. में हायमेनोप्टेरा नाम उन कीटों को दिया जिनके पंख झिल्लीमय होते हैं तथा जिनकी नारियों में डंक होता है। अब तक डेढ़ लाख से अधिक जीवित हायमेनोप्टेरा प्रजातियों का वर्णन किया जा चुका है।[1][2] इसके अलावा इसमें २ हजार से अधिक जन्तु अब विलुप्त हो चुके हैं।[3]
अनुक्रम
1 परिचय
2 शरीररचना
3 जनन और विकसन
4 जीवन
5 हानि और लाभ
6 चित्रदीर्घा
7 भौगोलिक वितरण
8 भूवृत्तीय वितरण
9 वर्गीकरण
10 सन्दर्भ
10.1 संदर्भ ग्रंथ
11 बाहरी कड़ियाँ
परिचय
इन कीटों के लक्षण ये हैं – पक्ष (पंख) झिल्लीमय, प्राय: छोटे और पारदर्शक होते हैं तथा पक्षों का नाड़ीविन्यास (Venation) क्षीण होता है। आगे वाले पंख की तुलना में पीछे वाला पंख बड़ा होता है। पश्चपक्ष अग्रपक्ष के पिछलेवाले किनारे में ठीक-ठीक समा जाता है। अग्रपक्ष का पिछला किनारा मुड़ा रहता है जिसमें पश्चपक्ष के अगले किनारेवालें काँटे (Hamuli) फँस जाते हैं। ये काँटे बहुत ही छोटे तथा एक पंक्ति में होते हैं। कुछ जातियों की नारियाँ पक्षविहीन भी होती हैं, उदाहरणत: डेसीबेबरिस अरजेंटीपेस (Dasybabris argenti) में, किंतु नर सदैव पक्षवाले होते हैं। इनके मुखभाग चबाकर खानेवाले (chewing type) या चबाने चाटनेवाले (chewing lapping type) होते हैं। मैंडिबल तो चबाने या काटने का कार्य करते हैं, किंतु लेबियम प्राय: एक प्रकार की जिह्वा सी बन जाता है, जिससे पतंग भोजन चाटता है। वक्ष के अग्र और मध्य खंड का समेकन हो जाता है। उदर प्राय: पतला होकर कमर सा बन जाता है और इसके प्रथम खंड का वक्ष से सदा ही समेकन रहता है। नारियों में अंडरोपक (ovipositor) सदा पाया जाता है, जो काटने तथा छेदने और रक्षक तथा आक्रामक शस्त्र के रूप में डंक मारने का कार्य करता है। इनमें पूर्ण रूतांपरण होता है। डिंभ या तो इल्लियों के आकार के या बिना टाँगोंवाले होते हैं। उदर की टाँगें, जो पूर्वपाद (Proleg) कहलाती हैं, पाँच जोड़ी से अधिक होती हैं। कलापक्ष की बहुत सी जातियाँ समाजों में रहती हैं।
कलापक्ष सर्वाधिक विकसित कीटगणों में से एक गण है। इस गण की महत्ता केवल इसलिए नहीं है कि इसकी रचना पूर्ण रीति से हो चुकी है, वरन् इसलिए भी है कि इसमें अंत: प्रवृत्ति का अद्भूत विकास मिलता है। इसके जीवन के विषय में पर्याप्त अध्ययन द्वारा ज्ञात हुआ है कि इस कीटगण में समाज का विकसन किस प्रकार हुआ। कलापक्ष की लगभग 90,000 जातियों का पता चला है। इनमें से अधिकांश जातियाँ अन्य गणों की जातियों की भाँति एकाकी (Solitary) जीवन ही व्यतीत करती हैं, केवल कुछ ही जातियों में सामाजिक जीवन की प्रवृत्ति विकसित हुई है। ये जातियाँ बड़े-बड़े समाजों में रहती हैं, जैसे मधुमक्खियाँ, बर्रे और चीटियाँ। कलापक्ष की सहस्रों जातियाँ पराश्रयी (parasitic) होने के कारण मनुष्य के लिए बहुत लाभदायक हैं, क्योंकि ये अनेक हानिकारक कीटों को नष्ट कर देती हैं।
शरीररचना
जीवन
मधुमक्खियाँ, बर्रे और कुछ चींटियाँ अपना डंक अपनी रक्षा के लिए प्रयुक्त करती हैं। इनके डंक की जड़ पर विशेष प्रकार की बड़ी ग्रंथि होती है, जिसका स्राव डंक मारते समय शत्रु में प्रविष्ट हो जाता है। यह स्राव शत्रु में क्षोभ उत्पन्न करता है। चींटियों के स्राव में फ़ॉर्मिक अम्ल होता है।
हानि और लाभ