चिंता का कारण
निपटान के उपाय
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भारत की आबादी 1947 में 34.2 करोड़ थी जो 1991 में बढ़कर 84.6 करोड़ में से 22 करोड़ लोग करीब 40,00 शहरी क्षेत्रों में रहते हैं। शहरी जनसंख्या के 40 प्रतिशत लोग बेहद गरीब हैं और झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों अथवा पटरियों पर रहते हैं। सुरक्षित पेयजल और सफाई की सुविधाएँ इनकी पहुँच से बाहर हैं।
अनुमान है कि सन 2000 तक भारत की जनसंख्या एक अरब से भी ज्यादा हो जाएगी। सन 2015 तक शहरी आबादी बढ़कर 47 करोड़ हो जाने की सम्भावना है। बीते वर्षों में शहरी और ग्रामीण दोनों ही इलाकों में आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता तथा जीवन स्तर में लगातार गिरावट आई है। बदलाव के इस दौर में शहरी इलाकों के गरीब लोगों पर सबसे बुरा असर पड़ा है। अगर विभिन्न क्षेत्रों में समन्वय और शहरी इलाकों में ठोस और द्रव दोनों तरह के कूड़े-कचरे को ठिकाने लगाने की उपयुक्त एवं अत्याधुनिक टेक्नोलाजी विकसित करने के लिए कदम नहीं उठाए गए तो जनसंख्या के बढ़ते घनत्व, सुरक्षित पेयजल की कमी और अपर्याप्त शहरी स्वच्छता के स्वास्थ्य तथा पर्यावरण सम्बन्धी दुष्परिणाम और भी गम्भीर हो जाने की आशंका है।
ठोस कूड़ा एक सामान्य शब्द है जिसका इस्तेमाल उत्पादन प्रक्रिया के दौरान पैदा होने वाले अनुपयोगी सह-उत्पादों के साथ-साथ ऐसी बेकार वस्तुओं के लिए भी किया जाता है जिनकी उनके मालिकों के लिए कोई उपयोगिता नहीं है। भौतिक रूप में ठोस कूड़े का मतलब सिर्फ वस्तुओं से नहीं है बल्कि किसी पात्र या कंटेनर में बन्द तरल या गैसीय पदार्थ भी इसके अन्तर्गत आ जाते हैं। जहाँ अनुपयोगी गैसें वातावरण में छोड़ दिया जाता है, वहीं ठोस कूड़ा-करकट तथा बेकार वस्तुएँ आमतौर पर ही छोड़ दी जाती हैं। इन पर गैसों और तरल पदार्थों से अलग कानून लागू होते हैं।
म्युनिसिपल सालिड वेस्ट यानी शहरी ठोस कूड़े का अर्थ ऐसी ठोस बेकार वस्तुओं से है जिनको इकट्ठा करने और निपटाने की जिम्मेदारी नगरपालिकाओं या स्थानीय शहरी निकायों की होती है। शहरी ठोस कूड़े का समुचित प्रबंध स्थानीय निकायों के महत्वपूर्ण उत्तरदायित्वों में से एक है। ठोस कूड़े की ठीक तरह से सफाई न होने के कारण ही अनेक बीमारियाँ पैदा होती हैं। शहरी ठोस कूड़े की ठीक से सफाई न होने के एक मामले में 1998 में दिल्ली में हैजे और पेचिश से करीब एक सौ लोग मारे गए थे
हमारी न्यायिक प्रणाली के सर्वोच्च स्तर यानी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48-क में कहा गया है कि राज्य पर्यावरण के संरक्षण और उनमें सुधार के प्रयास करेगा। इसमें स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि “राज्य पर्यावरण के संरक्षण और उसमें सुधार तथा देश के वनों और वन्य जीवन की सुरक्षा के प्रयास करेगा।”
कूड़े-करकट को ठिकाने लगाना जन-स्वास्थ्य की बुनियादी शर्त है। इसलिए संविधान के इस अनुच्छेद में कूड़े के सही निपटान की जिम्मेदारी राज्य को सौंपी गई है।
HOPE IT HELPS
MARK AS BRAINLIST!!
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