Hindi, asked by prakhargdmpc2avb, 9 months ago

चाटुकार मानव धर्म के लिए अभिशाप है निबंध 370-450 words fast bonus point question..wrong answer will be deleted.....urgent vryy urgent

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Answered by minakshigarg795
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मार्केट प्लेस

मानव धर्म

भारतीय ऋषिमुनियों और चिंतकों के मतानुसार सृष्टि में मानव से अधिक श्रेष्ठ और कोई नहीं। मनुष्य जीवन सृष्टि की सर्वोपरि कलाकृति है। ऐसी कायिक और मानसिक सर्वागपूर्ण रचना और किसी प्राणी की नहीं है। जब एक बार कोई मनुष्य योनि में आ जाता है तो मानवता उससे स्वयं जुड़ जाती है। इसका सर्वदा ध्यान रखना, उससे विलग न होना ही मानव जीवन की सार्थकता है। मानव की प्रतिष्ठा में ही धर्म की प्रतिष्ठा है। मानव को संतृप्त, कुंठित एवं प्रताड़ित करके कोई भी धर्म सामान्य नहीं हो सकता। इसीलिए संस्कृति राष्ट्रीयता के जनक स्वामी विवेकानंद कहा करते थे, 'सच्ची ईशोपासना यह है कि हम अपने मानव-बंधुओं की सेवा में अपने आपको लगा दें।' सदाचार और मानवता की बलिवेदी पर धर्म का प्रचार-प्रसार करना अनैतिक एवं अमानवीय है। जो रोटी को तरस रहे है, उनके हाथों में दर्शन और धर्म ग्रंथ रखना उनका मजाक उड़ाना है। मानवता का विस्तार किसी विशेष परिधि तक सीमित न होकर विश्वव्यापी है। अत: इसका विकास चाहे किसी भूखंड पर हो, किंतु विश्वभर की मानव जाति एक ही है। समानता की इसी भावना को आत्मसात करते हुए हमारे मनीषियों ने कहा-यह सब जो कुछ पृथ्वी पर चराचर वस्तु है, ईश्वर से आच्छादित है।

मानव धर्म वह व्यवहार है जो मानव जगत में परस्पर प्रेम, सहानुभूति, एक दूसरे का सम्मान करना आदि सिखाकर हमें श्रेष्ठ आदर्शो की ओर ले जाता है। मानव धर्म उस सर्वप्रिय, सर्वश्रेष्ठ और सर्वहितैषी स्वच्छ व्यवहार को माना गया है जिसका अनुसरण करने से सबको प्रसन्नता एवं शांति प्राप्त हो सके। धर्म वह मानवीय आचरण है जो अलौकिक कल्पना पर आधारित है और जिनका आचरण श्रेयस्कर माना जाता है। संसार के सभी धर्मो की मान्यता है कि विश्व एक नैतिक राज्य है और धर्म उस नैतिक राज्य का कानून है। दूसरों की भावनाओं को न समझना, उनके साथ अन्याय करना और अपनी जिद पर अड़े रहना धर्म नहीं है। एकता, सौमनस्य और सबका आदर ही धर्म का मार्ग है, साथ ही सच्ची मानवता का परिचय भी।

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