चिंता ने चेतना की चिता सजा दी । स्वमत
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चिंता ने चेतना की चिता सजा दी । स्वमत...
✎... चिंता ने चेतना की चिता सजा दी से तात्पर्य है कि चिंता के कारण मनुष्य अपनी चेतना को खो देता है, उसकी बुद्धि कुंद हो जाती है क्योंकि चिंता के कारण वह चिंतन करना छोड़ देता है, और चिंतन का अभाव उसकी चेतना के लिए चिता के समान बन जाता है। चिंता के कारण मनुष्य की विचार शक्ति समाप्त हो जाती है, जहाँ मनुष्य की विचार शक्ति समाप्त हो जाती है, वो सोचना-विचारना छोड़ देता है, इसी कारण उसकी चेतना की चिता सज जाती है।
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