चित्र जानवर है। देखोगे तो प्रसन्न हो जाओगे। बाबा भारती ने कहा।
उसकी चाल तुम्हारा मन मोह लेगी। बाबा भारती बोले।
कहते हैं देखने में भी बहुत सुदर है। खड्गसिंह ने कहा।
क्या कहनाजो उसे एक बार देख लेता है. उसके हृदय पर उसकी छति आई, "ओ बाबा, इस कंगले की सुनते जाना।"
बाबा भारती और खड्गसह अस्तबल में पहुँचे। बाबा ने घोड़ा दिखाया घमंड से,
बहुत दिनों से अभिलाषा थी. पर ज उपस्थित हो सका हूँ।" खड्गसिंह
मेखा आश्चर्य से। उसने सैकड़ों घोडे देखे थे, परतु ऐसा बाँका घोड़ा उसक
कभी न गुजरा था। सोचने लगा- ऐसा घोड़ा तो मेरे पास होना चाहिए था।
को ऐसी चीजों से क्या लाभ? कुछ देर तक आश्चर्य से चुपचाप खड़ा रहा
बालको की-सी अधीरता से बोला- परंतु बाबा जी! इसकी चाल न देखीले बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपाहिज को घोड़े पर सवार किया और स्वयं उसकी
दूसरे के मुख से तारीफ सुनने के लिए उनका हृदय अधीर हो गया था।
को बाबा जी खोलकर बाहर लाए। उसकी चाल को देखकर खडा
हृदय पर सॉप लोट गया। वह डाकू था
वस्तु उसे पसंद आ जाए. उसपर वह अपना
समझता था। उसके पास
और आदमी दोनों थे। जहाक खड्गसिंह था। बाबा भारती थोड़ी
उसने कहा- 'बाबाजीदर तक चुप रहे और कुछ समय
घोड़ा आपके पास
की रखवाली में कटनए कहा- "बाबा जी, यह घोड़ा
प्रति क्षण खगसिंह नब न दूंगा।
लगा रहता. परतु काबा जी ने कहा- "परतु एक बात
बीत गए और वह सुनते जाओ। खड्गसिंह ठहर गया।
संध्या का समय था। बाबा भारती सुलतान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे।
इस समय उनकी आँखों में चमक और मुख पर प्रसन्नता थी। कभी घोड़े के शरीर को
देखते, कभी उसके रंग को और मन में फूले न समाते थे। सहसा एक ओर से आवाज
आवाज में करुणा थी। बाबा ने घोड़े को रोक लिया। देखा. एक अपाहिज वृक्ष की छाया में
उड़ा कराह रहा है। बोले- "क्यों! तुम्हें क्या कष्ट है?"
अपाहिज ने हाथ जोड़कर कहा- "बाबा, मैं दुखियारा हूँ। मुझपर दया करो। रामावाला
पहाँ से तीन मील है, मुझे वहाँ जाना है। घोड़े पर चढ़ा लो, परमात्मा भला करेगा।"
वहाँ तुम्हारा कौन है?"
दुगार्दत्त वैद्य का नाम आपने सुना होगा। मैं उनका सौतेला भाई हूँ।"
पकड़कर धीरे-धीरे चलने लगे। सहसा उन्हें एक
मटका-सा लगा और लगाम हाथ से छूट गई। उनके आश्चर्य
का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की
पीठ पर तनकर बैठा है और घोड़े को दौड़ाए लिए जा
हा है तो उनके मुख से भय विस्मय और निराशा
से मिली हुई चीख निकल गई। वह अपाहिज
पश्चात् पूरे बल से चिल्लाकर बोले-
'जरा ठहर जा।
बगसिंह ने यह आवाज सुनकर
गोड़ा रोक लिया और उसकी
परदन पर प्यार से हाथ फेरते
बा भारती ने निकट जाकर कहा-
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दूंगा।"
२
बाबा भारती डर
उन्हें रात को
आती। सारी रात
भी नहीं।
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please post your doubt also and there are lot of mistakes in the paragraph....
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