Art, asked by yadavkripya12, 17 days ago

चित्रकला में संगीत का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए​

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Answered by lakshitakumari21
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भारतीय संगीत का इतिहास, भगवतशरण शर्मा की पुस्तक के अनुसार1 इन खुदाईयों में श्री शंकर भगवान की तांडव नृत्य करती हुई एक मूर्ति, एक नारी की मूर्ति जो नृत्य मुद्रा में है मिली। इसके साथ ही ऐसे कई चित्र भी मिले है, जिनमें नृत्य के उत्कृष्ट नमूने भी प्राप्त हुए। एक ऐसी मिट्‌टी की मूर्ति प्राप्त हुई जिसके गले में ढोल जैसा वाद्य है, और एक वाद्य जो आधुनिक मृदंग के पूर्वज जैसा भी प्राप्त होता है। कई चित्रों में वीणा का मूल रूप तथा ''कर ताल'' ऐसे वाद्य दिखाई पड़ते है। इतनी प्राचीन संस्कृति जिसमें दो विभिन्न कलाएँ संगीत और चित्र कला का उद्‌गम लगभग साथ ही हुआ होगा, ऐसा प्रतीत होता है।

भारतीय संगीत गायन, वादन तथा नृत्य इन तीनों कलाओं से मिलकर बना है, इसमें सूर, लय, तथा ताल के साथ ही सौन्दर्यता तथा बंदिश के भाव, भाषा का भी अत्यंत महत्व है। प्राचीन इतिहास में मूर्तिकला एवं नृत्य कला के इन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि मुर्तियों की भाव भंगिमाओं तथा उनके द्वारा धारण किये गये वाद्य संगीत के अस्तित्व तथा स्थापित होने के प्रमाण है। यह कहना सर्वथा उचित होगा कि भारत की सांस्कृतिक विरासत जैसे प्राचीन मंदिरों तथा धार्मिक ग्रंथो के साथ ही भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन देशी प्रान्तीय लोक संगीत में जिस प्रकार उल्लेखित है, उसी प्रकार मंदिरो तथा धार्मिक स्थलो पर भगवान श्री कृष्ण एवं राधा की मूर्तियों का अत्यंत सुंदर तथा आकर्षक चित्रण मंदिर की दीवारों तथा धार्मिक स्थलों पर बनाये हुए मिलते है। अर्थात संगीत और चित्रकला के स्थापित होने का समय साथ-साथ ही होगा। संगीत विषय में कलाकार मनोवृत्ति से चित्र पटल पर अपनी कला की अभिव्यक्ति करता है एवं चित्रकला में कलाकार उन भावों को मूर्त रूप देकर एक साक्षात उदाहरण प्रस्तुत करता है।

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