चित्रलेखा का चरित्र चित्रण
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चित्रलेखा' न केवल भगवतीचरण वर्मा को एक उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठा दिलाने वाला पहला उपन्यास है बल्कि हिंदी के उन विरले उपन्यासों में भी गणनीय है, जिनकी लोकप्रियता बराबर काल की सीमा को लाँघती रही है। चित्रलेखा की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है। ... यह उपन्यास पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है।
रच
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चित्रलेखा का चरित्र चित्रण
Explanation:
चित्रलेखा अपने मन की बात बहुत कुछ उससे छिपाने की चेष्टा करती है, पर वह समझझ लेता है कि वह कुमारगिरि की ओर आकृष्ट हो गयी है । देवत्व को स्वीकार किया | चित्रलेखा के लिए उसने असाधारण त्याग किया। अपना धन, वैभव, सुख और सात पद तक छोड़कर मिकारी का जीवन उसने अपनाया । क्षमा मे उसके चरित्र को और मी मुखरित कर दिया है
चित्रलेखा ने कहा मैं वैश्या नहीं हूं, केवल एक नर्तकी हूं और मेरा संबंध व्यक्ति से नहीं है मैं समुदाय में आती हूं। यह सुनकर बीजगुप्त उदास हो गया । वह स्वयं तो बेचैन था ही साथ ही साथ चित्रलेखा के हृदय में भी वही बेचैनी उत्पन्न कर गया।
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