चित्रलेखा उपन्यास में पाप और पुण्य का द्वंद्व स्पष्ट किजीए।
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संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह मनुष्य की मानसिकता पर निर्भर है कि वह किसे पाप माने और किसे पुण्य कहे। ... कालजयी भगवतीचरण वर्मा के उपन्यास चित्रलेखा के अनुसार व्यक्ति न तो 'पाप' करता है और न ही 'पुण्य' करता है, बल्कि व्यक्ति तो वह करता है, जो करने के लिए परिस्थितियां उसे विवश कर देती हैं
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