चातक पुत्र क्यों बेचैन था?
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यह उधार माँगना भी एक तरह का माँगना ही होता है ।'' बुध्दन ने बेटे से कहा “जिस तरह चातक अपने प्राण देकर भी मेघ के सिवा किसी दूसरे का जल लेने का व्रत नहीं तोडता उसी तरह तु भी ईमानदारी की टेक न छोड़ना । चाहे जितनी बड़ी विपत्ति पड़े, अपनी नियत न डुलाना ।" इस बात को वृक्ष के ऊपर बैठा हुआ चातक-पुत्र सुन रहा था । यही बात सुन के चातक पुत्र बेचैन हो गया था।
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pani ke leya chatka putra neras tha
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