चितरलेखा उपन्यास की पातर यशोधरा के पिता कौन थे
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चित्रलेखा भगवती चरण वर्मा द्वारा रचित हिन्दी उपन्यास है। यह न केवल भगवतीचरण वर्मा को ए॰ उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठा दिलाने वाला पहला उपन्यास है बल्कि हिन्दी के उन विरले उपन्यासों में भी गणनीय है जिनकी लोकप्रियता काल की सीमा को लाँघती रही है।
1934 में प्रकाशित 'चित्रलेखा' ने लोकप्रियता के कई पुराने कीर्तिमान बनाए॰थे। कहा जाता है कि अनेक भारतीय भाषाओं में अनूदित होने के अतिरिक्त केवल हिन्दी में नवें दशक तक इसकी ढाई लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी थीं। 1940 में केदार शर्मा के निर्देशन में "चित्रलेखा' पर एक फिल्म भी बनी।
चित्रलेखा की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है। पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है? - इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए महाप्रभु रत्नांबर के दो शिष्य, श्वेतांक और विशालदेव, क्रमश: सामंत बीजगुप्त और योगी कुमारगिरि की शरण में जाते हैं। और उनके निष्कर्षों पर महाप्रभु रत्नांबर की टिप्पणी है, ‘‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।[1]’’
1934 में प्रकाशित 'चित्रलेखा' ने लोकप्रियता के कई पुराने कीर्तिमान बनाए॰थे। कहा जाता है कि अनेक भारतीय भाषाओं में अनूदित होने के अतिरिक्त केवल हिन्दी में नवें दशक तक इसकी ढाई लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी थीं। 1940 में केदार शर्मा के निर्देशन में "चित्रलेखा' पर एक फिल्म भी बनी।
चित्रलेखा की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है। पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है? - इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए महाप्रभु रत्नांबर के दो शिष्य, श्वेतांक और विशालदेव, क्रमश: सामंत बीजगुप्त और योगी कुमारगिरि की शरण में जाते हैं। और उनके निष्कर्षों पर महाप्रभु रत्नांबर की टिप्पणी है, ‘‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।[1]’’
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