Hindi, asked by varshini9032, 7 months ago

चिदंबरा के अमर रचनाकर पंत जी का साहित्यिक परिचय लिखिए

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Answered by shrutipancht
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Explanation:

सुमित्रानंदन पंत की द्वितीय उत्थान की रचनाएँ, जिनमें युग की, भौतिक आध्यात्मिक दोनों चरणों की, प्रगति की चापें ध्वनित हैं, समय-समय पर विशेष रूप से, कटु आलोचनाओं एवं आक्षेपों की लक्ष्य रही हैं। ये आलोचनाएँ, प्रकारांतर से, उस युग के साहित्यिक मूल्यों तथा रूप-शिल्प संबंधी संघर्षों तथा द्वन्द्वों को स्पष्ट करती हैं, जो अपने आपमें एक मनोरंजक अध्ययन है।[1]

आलोचनाओं एवं आक्षेपों की लक्ष्य रही हैं। ये आलोचनाएँ, प्रकारांतर से, उस युग के साहित्यिक मूल्यों तथा रूप-शिल्प संबंधी संघर्षों तथा द्वन्द्वों को स्पष्ट करती हैं, जो अपने आपमें एक मनोरंजक अध्ययन है।[1]इस संग्रह के विषय में सुमित्रानंदन पंत ने स्वयं लिखा है -- "चिदंबरा की पृथु-आकृति में मेरी भौतिक, सामाजिक, मानसिक, आध्यात्मिक संचरणों से प्रेरित कृतियों को एक स्थान पर एकत्रित देखकर पाठकों को उनके भीतर व्याप्त एकता के सूत्रों को समझने में अधिक सहायता मिल सकेगी। इसमें मैंने अपनी सीमाओं के भीतर, अपने युग के बहिरंतर के जीवन तथा चैतन्य को, नवीन मानवता की कल्पना से मण्डित कर, वाणी देने का प्रयत्न किया है। मेरी दृष्टि में युगवाणी से लेकर वाणी तक मेरी काव्य-चेतना का एक ही संचरण है, जिसके भीतर भौतिक और आध्यात्मिक चरणों की सार्थकता, द्विपद मानव की प्रकृति के लिए सदैव ही अनिवार्य रूप से रहेगी। पाठक देखेंगे कि (इन रचनाओं में) मैंने भौतिक-आध्यात्मिक, दोनों दर्शनों से जीवनोपयोगी तत्वों को लेकर, जड़-चेतन सम्बन्धी एकांगी दृष्टिकोण का परित्याग कर, व्यापक सक्रिय सामंजस्य के धरातल पर, नवीन लोक जीवन के रूप में, भरे-पूरे मनुष्यत्व अथवा मानवता का निर्माण करने का प्रयत्न किया है, जो इस युग की सर्वोपरि आवश्यकता है?"[2]

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Answered by tejateluguprogaming2
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