चांद का कुर्ता कविता को लिखो
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ठिठुर-ठिठुरकर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ। न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही कोई भाड़े का।'' बच्चे की सुन बात कहा माता ने, ''अरे सलोने! कुशल करें भगवान, लगें मत तुझको जादू-टोने।
चांद का कुर्ता / रामधारी सिंह "दिनकर"
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