चींद्र और चकोर के माध्यम से कवव न े ईश्वर और भक्त के सींबींि को वकस प्रकार स्पष्ट वकया ि
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कवी ने इस पंक्ति के माध्यम यह कहना चाहते है कि जिस प्रकार से चन्द्रमा को देखे बिना चकोर पंझी नहीं रह सकती हैं चकोर पंछी चन्द्रमा के रोशनी की ओर लीन होजाती हैं ठीक उसी प्रकार ईश्वर के बीना भक्त अधूरा है भक्त ईश्वर के भक्ति में डूबे (लीन) रहते है....
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