Hindi, asked by sameershaikh392004, 4 months ago

चंद्रशेखर आजाद को किन पर पूरा भरोसा था?
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Answered by saipradk2006
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Answer:

चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे दिलेर, सबसे बहादुर और सबसे अच्छे नेतृत्व कौशल के लिए विख्यात क्रांतिकारी थे। चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिवस पर उनके जीवन से जुड़े हुए कुछ प्रेरणा दायक किस्से जानेंगे। आजाद किस तरह अंग्रेजी हुकूमत को देते थे चंद्रशेखर आजाद चुनौती, एक बार नहीं, बार-बार लगातार? चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे मतवाले और यशस्वी क्रांतिकारी थे।

17 साल के चंद्रशेखर क्रांतिकारी दल हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोशिएशन में शामिल हो गए थे। दल में उनको सब क्वीक-सिल्वर कह कर पुकारते थे। मतलब, जिसका पारा बड़ी जल्दी चढ़ जाता हो। पार्टी की ओर से धन एकत्र करने के लिए जितने भी काम होते थे,चंद्रशेखर आजाद उनमें सबसे आगे रहते थे। सैंडर्स,… भगत सिंह (Bhagat Singh) द्वारा सेंट्रल असेंबली में बम फेंका जाना, वायसराय की ट्रेन बम से उड़ाने की कोशिश, इन सबकी जो योजना बनती थी, उसको नेतृत्व चंद्रशेखर आजाद ही दिया करते थे। प्रसिद्ध काकोरी कांड में भी आजाद ने सक्रिय भूमिका निभाई थी।

पंडित चंद्रशेखर आजाद का जन्म हुआ था 23 जुलाई, 1906 को भवरा में, जो अब मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में आता है। उनके पिता का नाम था पंडित सीताराम तिवारी। भीषण अकाल पड़ने के कारण वे उत्तरप्रदेश के उन्नांव जिले को छोड़, मध्यप्रदेश की अलीराजपुर रियासत के गांव भावरा में जाकर बस गए थे। चंद्रशेखर जब बड़े हुए, अपने माता-पिता को छोड़कर भाग गए और बनारस पहुंच गए। वहां अपने फुफा शिव विनायक मिश्र के साथ रहने लगे। वहीं उन्होंने संस्कृत विद्यापीठ में दाखिला लिया और वहीं से शुरू हुई आजादी की लड़ाई के सफर में उनकी भाग

बचपन से ही चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) के अंदर एक अजीब सी हिम्मत और जिद थी। एक किस्सा है। चंद्रशेखर आजाद एक आदिवासी गांव में रहते थे, वहीं बड़े हुए थे। सबसे निर्धन परिवार शायद मोहल्ले में उन्हीं का था। दिपावली का समय था। किसी के पास फुलझड़ी थी, किसी के पास पटाखे तो किसी के पास मेहताब की रंगीन माचिस। चंद्रशेखर के पास कुछ भी नहीं था। फिर नजर पड़ी उसकी एक बच्चे पर जिसके पास मेहताब की माचिस थी। वह उसमें से एक तिल्ली निकालता, एक छोर से उसके पकड़ कर डरते-डरते माचिस से रगड़ता और जैसे ही माचिस जलती, रंगीन रोशनी निकलनी शुरू होती, डर कर तिल्ली के जमीन पर फेंक देता।

अब, बालक चंद्रशेखर से रहा नहीं गया, उसने कहा मुझे माचिस दो, मैं सारी तिल्लियां एक साथ जलाऊंगा और जब तक वह पूरी जल नहीं जाएंगी, हाथ में पकड़े खड़े रहूंगा। बालक ने बड़े चुनौतीपूर्ण अंदाज से वह माचिस चंद्रशेखर आजाद को दी और कहा कि जो कह रहे हो, वो कर के दिखाओ तो जानूं। चंद्रशेखर ने सारी तिल्लियां इकट्ठी निकालीं माचिस से और भक्क से तिल्लियां जला दीं। जिन तिल्लियों का रोगन चंद्रशेखर की हथेली की तरफ था, वे भी जलने लगीं और चंद्रशेखर की हथेली भी जलने लगी। असह्य जलन हुई, फफोले पड़ गए, लेकिल चंद्रशेखर ने उन तिल्लियों को तब तक नहीं छोड़ा हाथ से, जब तक कि उनकी रंगीन रोशनी समाप्त नहीं हुई।

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