चाँदनी रात का प्रथम प्रहर हम चले नाव लेकर सत्वर सिकता की सस्मिता सीपी पर मोती की ज्योत्सना रही विचर लो पालें चढ़ी, उठा लंगर । मृदु मंद मंद मंथर मंथर लघु तरणि हंसिनी सी सुन्दर तिर रही खोल पालों के पर निश्चल जल के शुचि दर्पण पर प्रतिबिम्बित हो रजत पुलिन निर्भर दुहरे उँचे लगते क्षण भर काला काँकार का राजभवन सोया जल में निश्चित प्रमन पलकों पर वैभव स्वप्न सघन (क) कवि नौका विहार हेतु किस समय प्रस्थान करते हैं? (ख) रात्रि में गंगा नदी की रेती की शोभा कैसी लग रही थी? (ग) लघु तरणि हंसिनी सी सुन्दर' में कौन सा अलंकार है? (घ) रेखांकित पद्यांश की व्याख्या कीजिए। (ड) पाठ का शीर्षक तथा कवि का नाम बताइए। गों को किसी गात लेखक का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचना क
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Chandani Raat ka partham prahar ham chale naw lekar satwar sikta ki sasmita sipi par moti ki jyotsana Rahi vichar lo pale chadhi, utha langar !
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