चिड़िया अौर शारके के अगर बोल पाती तो उनके बीच क्या बातें होती संवाद लेखन
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पक्षी इंसानों से ज्यादा आजाद हैं. कम से कम वे सरहदों में तो नहीं बंधे हैं. वे धर्म-जाति और रंगों में नहीं बंटे हैं. यहां तक कि उन्होंने अपनी बोली भाषा को भी नहीं बदला है. वहीं दूसरी ओर मानव नित दिन नए बदलाव करने में यकीन रखता है. पिछले कुछ दशकों से बदलावों का ऐसा दौर चला है कि हम अपनी कई ऐतिहासिक विरासतें खोने की कगार पर पहुंच गए हैं.
इन्हीं विरासतों में एक है 'पक्षी भाषा संवाद' यानि ' बर्थ लैंग्वेज'. यह भाषा का वो हिस्सा है, जो मनुष्यों का पक्षियों से रिश्ता जोड़ता है. हालांकि आज के संदर्भ में लोग इसे पागलपन ही कहेंगे पर क्या आप जानते हैं कि इसी पागलपन के लिए टर्की का गिरेसुन प्रांत ख्याति प्राप्त कर चुका है. उसे यूनेस्को ने कल्चर हैरीटेज की सूची में शामिल कर दिया है.
खास बात यह है कि यह दुनिया का इकलौता ऐसा प्रांत है, जहां के अधिकांश गांव वाले पक्षियों की भाषा समझते और बोलते हैं. यानि वे चिड़िया से बात करने के लिए चीं-चीं और कबूतर से हाल चाल लेने के लिए गुंटर गूं कर सकते हैं.
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