चाय के साथ इस निरर्थक शक का प्रयोग हाेता है ।
वाय , वाना ,वार
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Explanation:
कभी कल-कल, छल-छल,अविराम बहती थी एक नदी, नाम था – अरपा। पास से गुजरते नाव चलाने वालों के एक दल को अरपा ने मंत्रमुग्ध किया। दल के मुखिया रामा केंवट ने यहाँ डेरा जमाना तय किया, साथ थी उसकी सुन्दर, नवयौवना बेटी -‘ बिलासा ‘।
दल के पुरुषों ने अरपा माई के जल को पूजते हुए नदी में नाव उतारी, जाल डाला। अरपा ने भी उनको माँ समान प्यार दिया। अब केंवट अरपा के और अरपा केंवटों की हो गयी। धीरे-धीरे ये बस्ती किसानों, लुहारों, बुनकरों से गुलज़ार होने लगी।
एक दिन गाँव में सूअर घुस आया। पुरुषों की अनुपस्थिति में वीरांगना बिलासा ने भाले से सूअर को मार गिराया। बिलासा का विवाह गाँव के नौजवान वंशी से हुआ। वीर, कुशल वंशी भी बिलासा का साथ पाकर समृद्ध हुआ।
एक दिन शाम के समय नदी से लौट रही बिलासा की आबरू पर एक सिपाही ने हाथ डालने की कोशिश की परन्तु साहसी बिलासा सिपाही से भिड़ गई। राजा कल्याण साय को इस घटना की जानकारी हुई तो उन्होंने सिपाही को दण्ड दिया। समय बीतने के साथ राजा एक बार शिकार पर निकले और सैनिकों से दूर निकल गए। अचानक राजा पर जंगली जानवर ने हमला किया। घायल पड़े राजा को बिलासा की सेवा-सुश्रुसा ने भला-चंगा कर दिया। सेवा से प्रसन्न राजा बिलासा और वंशी को पालकी में बिठाकर राजधानी रतनपुर ले आया। रूपवान बिलासा ने तीर-कमान वहीं वीर वंशी ने भाले के करतब दिखाकर सबको मोहित कर दिया। प्रसन्न हो राजा ने बिलासा को जागीर दी और नए नगर की स्थापना कर उसे बिलासा का नाम दिया। नाम मिला – “बिलासपुर”। बिलासा ने नगर को और भी सजाया-सँवारा।
दिल्ली के बादशाह जहाँगीर ने राजा कल्याण साय को उत्सव का बुलावा भेजा। राजा अपने साथ गोपाल मल्ल, बिलासा और भैरव को ले गए। बिलासा की तलवार, गोपाल और भैरव की वीरता का डंका दिल्ली में भी बज उठा। खुश होकर बादशाह ने राजा कल्याण को ईनाम देकर विदा किया तो राजा कल्याण साय ने बिलासा को तलवार देकर। अब बिलासा केवल बिलासा न होकर बिलासा माई होकर अमर हो गयी।
नदी किनारे लगी मूर्ति आज भी बिलासा माई की कीर्ति फैलाती और अरपा की कलकल ध्वनि से सुर मिलाती गुनगुनाती है –
“मरद बरोबर लगय बिलासा, लागय देवी के अवतार,
बघवा असन रेंगना जेखर, सनन सनन चलय तलवार।”भाववाचक कृत्-प्रत्यय बनाने के लिए धातु के अन्त में अ, अन्त, आ, आई, आन, आप, आपा, आव, आवा, आस, आवना, आवनी, आवट, आहट, ई, औता, औती, औवल, औनी, क, की, गी, त, ती, न, नी इत्यादि प्रत्ययों को जोड़ने से होती है। उदाहरणार्थ-
प्रत्यय धातु कृदंत-रूप
अ भर भार
अन्त भिड़ भिड़न्त
आ फेर फेरा
आई लड़ लड़ाई
आन उठ उठान
आप मिल मिलाप
आपा पूज पुजापा
आव खिंच खिंचाव
आवा भूल भुलावा
आस निकस निकास
आवना पा पावना
आवनी पा पावनी
आवट सज सजावट
आहट चिल्ल चिल्लाहट
ई बोल बोली
औता समझ समझौता
औती मान मनौती
औवल भूल भुलौवल
औनी पीस पिसौनी
क बैठ बैठक
की बैठ बैठकी
गी देन देनगी
त खप खपत
ती चढ़ चढ़ती
न दे देन
नी चाट चटनी
(v)क्रियाद्योतक कृत्-प्रत्यय
क्रियाद्योतक कृदन्त-विशेषण बनाने में आ, ता आदि प्रत्ययों का प्रयोग होता है।
'आ' भूतकाल का और 'ता' वर्तमानकाल का प्रत्यय है।
अतः क्रियाद्योतक कृत्-प्रत्यय के दो भेद है-
(i) वर्तमानकाल क्रियाद्योतक कृदन्त-विशेषण, और
(ii) भूतकालिक क्रियाद्योतक कृदन्त-विशेषण।
इनके उदाहरण इस प्रकार है-
वर्तमानकालिक विशेषण-
प्रत्यय धातु वर्तमानकालिक विशेषण
ता बह बहता
ता मर मरता
ता गा गाता
भूतकालिक विशेषण-
प्रत्यय धातु भूतकालिक विशेषण
आ पढ़ पढ़ा
आ धो धोया
आ गा गाया
संस्कृत के कृत्-प्रत्यय और संज्ञाएँ
कृत्-प्रत्यय धातु भाववाचक संज्ञाएँ
अ कम् काम
अना विद् वेदना
अना वन्द् वन्दना
आ इष् इच्छा
आ पूज् पूजा
ति शक् शक्ति
या मृग मृगया
तृ भुज् भोक्तृ (भोक्ता)
उ तन् तनु
इ त्यज् त्यागी
कृत्-प्रत्यय धातु कर्तृवाचक संज्ञाएँ
अक गै गायक
अ सृप् सर्प
अ दिव् देव
तृ दा दातृ (दाता)
य कृ कृत्य
अ प्र+ह् प्रहार