चचा छक्कन चची से क्यों खीज जाते थे?
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एक बात मैं शुरु में ही कह दूँ. इस घटना का वर्णन करने से मेरी इच्छा यह हरगिज़ नहीं है कि इससे चचा छक्कन के स्वभाव के जिस अंग पर प्रकाश पड़ता है, उसके संबंध में आप कोई स्थाई राय निर्धारित कर लें. सच तो यह है कि चचा छक्कन से संबंधित इस प्रकार की घटना मुझे सिर्फ़ यही एक मालूम है. न इससे पहले कोई ऐसी घटना मेरी नज़र से गुजरी और न बाद में. बल्कि ईमान की पूछिए तो इसके विपरीत बहुत – सी घटनाएँ मेरे देखने में आ चुकी हैं. कई बार मैं खुद देख चुका हूँ कि शाम के वक्त चचा छक्कन बाज़ार से कचौरियाँ या गँड़ेरियाँ या चिलगोज़े और मूंगफलियाँ एक बड़े-से रुमाल में बांध कर घर पर सबके लिए ले आए हैं. और फिर क्या बड़ा और क्या छोटा, सबमें बराबर – बराबर बाँटकर खाते-खिलाते रहे हैं. पर उस रोज़ अल्लाह जाने क्या बात हुई कि….! पर इसका विस्तृत वर्णन तो मुझे यहाँ करना है.